वर्ष 2024 में लगभग 12.9 करोड़ भारतीय प्रति दिन 2.15 डॉलर (लगभग 181 रुपए) से कम की आमदनी के साथ अत्यधिक गरीबी में जी रहे हैं, जबकि 1990 में अत्यधिक करीबी में रहने वालों की संख्या 43.1 करोड़ थी. हालांकि, जनसंख्या में बढ़ोतरी की वजह से 1990 की तुलना में 2024 में मध्यम आय वाले देशों के लिए गरीबी की तय सीमा – प्रति दिन 6.85 डॉलर (लगभग 576 रुपए) – अधिक भारतीय गरीबी रेखा से नीचे रह रहे हैं. यह बात विश्व बैंक द्वारा मंगलवार को जारी रिपोर्ट में कही गई है.
विश्व बैंक द्वारा जारी ‘गरीबी, समृद्धि और ग्रह: पॉलीक्राइसिस से बाहर के रास्ते’ रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक गरीबी में कमी एक ठहराव पर आकर रुक गई है. 2020-2030 एक खोया हुआ दशक बताते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रगति की मौजूदा गति के हिसाब से अत्यधिक गरीबी को खत्म करने में दशकों लग जाएंगे, और लोगों को 6.85 डॉलर प्रतिदिन से ऊपर उठाने में एक सदी से अधिक का समय लगेगा.
विश्व बैंक ने कहा कि अगले दशक में वैश्विक चरम गरीबी में भारत के योगदान में काफी गिरावट आने का अनुमान है. ये अनुमान अगले दशक में प्रति व्यक्ति जीडीपी वृद्धि के अनुमानों के साथ-साथ ऐतिहासिक विकास दर पर आधारित हैं. भारत में 2030 में अत्यंत गरीबी दर शून्य करने पर भी 2030 में वैश्विक चरम गरीबी दर केवल 7.31 प्रतिशत से गिरकर 6.72 प्रतिशत ही रहेगी, जो अब भी तीन प्रतिशत के लक्ष्य से काफी ऊपर है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि नवीनतम एचसीईएस में हालिया पद्धति परिवर्तनों के प्रभाव की भी सावधानीपूर्वक जांच करने की आवश्यकता है. 1999-2000 के बाद से, भारत उपभोग डेटा संग्रह की सटीकता में सुधार करने के लिए विभिन्न रिकॉल पीरियड (उत्तरदाताओं को पिछली खपत की घटनाओं को याद करने के लिए कहा जाता है, एक महीने या छह महीने पहले की मात्रा) के साथ प्रयोग कर रहा है.