भारत और यूरोपीय संघ (EU) के रिश्ते बीते कुछ वर्षों में तेजी से आगे बढ़े हैं, लेकिन रूस से भारत की कच्चे तेल की भारी खरीद और मॉस्को के साथ गहराते सैन्य रिश्तों ने इन संबंधों में नया तनाव पैदा कर दिया है।
EU ने भारत के रुख पर नाराजगी जताई है और एक नया एजेंडा पेश करते हुए संकेत दिया है कि भविष्य में व्यापार और सुरक्षा साझेदारी इसी पर निर्भर करेगी।
रूस से तेल आयात बना विवाद की जड़
यूरोपीय संघ ने रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद मॉस्को पर कड़े प्रतिबंध लगाए हैं। इसके बावजूद भारत ने पिछले तीन वर्षों में रूस से कच्चे तेल की रिकॉर्ड खरीद की है।
- रूस से भारत का तेल आयात 2021 की तुलना में अब लगभग 4 गुना बढ़ चुका है।
- इससे भारत को ऊर्जा के मोर्चे पर बड़ी राहत मिली और घरेलू बाजार में कीमतें नियंत्रित रहीं।
- लेकिन EU को लगता है कि यह कदम उनके प्रतिबंधों को कमजोर करता है और रूस को आर्थिक सहारा देता है।
यही वजह है कि यूरोप लगातार भारत पर दबाव बना रहा है कि वह रूस से तेल खरीद घटाए और विकल्प तलाशे।
सैन्य सहयोग भी बढ़ा EU की चिंता
तेल आयात के साथ-साथ भारत-रूस के बीच बढ़ता रक्षा सहयोग भी यूरोपीय देशों को खटक रहा है।
- हाल ही में भारत ने रूस से मिसाइल सिस्टम और स्पेयर पार्ट्स के लिए नए समझौते किए।
- दोनों देशों की सेनाओं के बीच संयुक्त अभ्यास भी हुए।
- EU का मानना है कि भारत की यह नीति पश्चिमी सुरक्षा गठबंधनों (जैसे NATO और EU की सामरिक नीति) के खिलाफ जाती है।
भारत का रुख: “राष्ट्रीय हित सर्वोपरि”
भारत ने EU की नाराजगी पर प्रतिक्रिया देते हुए साफ कहा है कि—
- ऊर्जा सुरक्षा और रक्षा सहयोग उसकी राष्ट्रीय प्राथमिकताएं हैं।
- भारत किसी भी देश से रिश्ते अपने स्वतंत्र विदेश नीति के आधार पर तय करेगा।
- रूस के साथ सहयोग का मतलब यह नहीं कि भारत यूरोप या अमेरिका से दूरी बना रहा है।
भारत बार-बार यह भी दोहराता रहा है कि उसकी नीति “Strategic Autonomy” पर आधारित है और वह किसी एक धड़े का हिस्सा नहीं है।
EU का नया एजेंडा
ब्रुसेल्स से आए ताज़ा संदेश में कहा गया है कि यूरोपीय संघ भारत के साथ रिश्तों को मजबूत करना चाहता है, लेकिन इसके लिए कुछ नई शर्तें रखी जा सकती हैं।
- ग्रीन एनर्जी और टेक्नोलॉजी सेक्टर में भारत-EU साझेदारी पर जोर।
- रूस से तेल आयात धीरे-धीरे कम करने की मांग।
- रक्षा और सुरक्षा मामलों में यूरोपीय कंपनियों को भारत के साथ बराबरी का मौका देने की अपील।
विशेषज्ञों की राय
- रणनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि भारत और EU दोनों एक-दूसरे के लिए जरूरी हैं। भारत यूरोप के लिए सबसे बड़ा उभरता बाजार है, जबकि EU भारत का अहम ट्रेड पार्टनर है।
- ऊर्जा विशेषज्ञों का कहना है कि रूस से सस्ता तेल भारत की अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद है, इसलिए भारत फिलहाल इससे पीछे हटने वाला नहीं।
- रक्षा मामलों के जानकार मानते हैं कि भारत को पश्चिमी देशों और रूस के बीच संतुलन बनाकर चलना होगा।
आगे का रास्ता
भारत और EU के बीच रिश्तों में मतभेद तो हैं, लेकिन संवाद जारी है। आने वाले महीनों में दोनों पक्षों के बीच Free Trade Agreement (FTA) पर बातचीत होनी है। माना जा रहा है कि इस एजेंडे में रूस का मुद्दा भी हावी रहेगा।
भारत और यूरोपीय संघ के बीच साझेदारी की राह आसान नहीं है। रूस से तेल खरीद और रक्षा सहयोग ने रिश्तों में खटास तो पैदा की है, लेकिन दोनों पक्षों के लिए एक-दूसरे का महत्व इतना ज्यादा है कि बातचीत और समझौते का रास्ता हमेशा खुला रहेगा। भारत जहां अपनी ऊर्जा सुरक्षा और सैन्य जरूरतों को प्राथमिकता दे रहा है, वहीं EU चाहता है कि भारत रूस से दूरी बनाए और यूरोप के साथ मिलकर आगे बढ़े।
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