चीन ने हाल ही में जल संसाधनों को लेकर एक विशाल प्रोजेक्ट की योजना बनाई है, जिसकी कुल लागत लगभग ₹15 लाख करोड़ आंकी गई है। इस परियोजना को कई विशेषज्ञ ‘Water War’ के रूपक में देख रहे हैं। इसकी वजह यह है कि यह केवल चीन के अंदर पानी की आपूर्ति और नियंत्रण तक सीमित नहीं है, बल्कि पड़ोसी देशों, विशेषकर भारत, पर इसके गंभीर असर पड़ने की संभावना है।
भारत और चीन कई महत्वपूर्ण नदियों के साझा स्रोत वाले देश हैं। यांग्त्ज़ी, ब्रह्मपुत्र और मेकांग जैसी नदियाँ चीन से निकलती हैं और पड़ोसी देशों की कृषि, जल आपूर्ति और उद्योग के लिए जीवनधारा की तरह काम करती हैं। अगर चीन इन नदियों के प्रवाह को नियंत्रित करता है, तो इससे भारत में पीने के पानी, सिंचाई और औद्योगिक गतिविधियों पर सीधा असर पड़ सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रोजेक्ट चीन की भू-राजनीतिक ताकत बढ़ाने का भी एक तरीका है। नदियों के प्रवाह और जल वितरण को नियंत्रित कर, चीन पड़ोसी देशों के लिए दबाव बनाने वाला हथियार तैयार कर सकता है। इसका असर केवल कृषि तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि आर्थिक और सामाजिक स्तर पर भी पड़ सकता है। भारत में जल संकट बढ़ सकता है, फसलें प्रभावित हो सकती हैं और पानी की कमी के कारण उद्योगों में उत्पादन बाधित हो सकता है।
इसके अलावा, जल संकट से संबंधित तनाव सीमा पार विवादों को भी जन्म दे सकते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि चीन का यह कदम क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा बन सकता है। अगर सही समय पर नीति और तैयारी नहीं की गई, तो आने वाले वर्षों में दक्षिण एशिया में जल सुरक्षा एक गंभीर चुनौती बन सकती है।
भारत को इस स्थिति का सामना करने के लिए कई स्तर पर तैयारियों की जरूरत है। पहला कदम है अपने जल संसाधनों और नदी तटवर्ती इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करना। दूसरा, क्षेत्रीय सहयोग और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सक्रिय रहकर चीन की नीतियों पर नजर रखना और आवश्यक कदम उठाना जरूरी है। साथ ही, जल संरक्षण और प्रबंधन के आधुनिक तरीकों को अपनाकर भारत को आत्मनिर्भर बनाना होगा।
विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि वैश्विक स्तर पर जल संकट बढ़ रहा है, और चीन का यह प्रोजेक्ट सिर्फ स्थानीय नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय चिंता का विषय बन सकता है। जल सुरक्षा, पर्यावरणीय स्थिरता और आर्थिक सुरक्षा एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। अगर नदियों के प्रवाह में व्यवधान आता है, तो इसका असर कृषि उत्पादन, उद्योग और लोगों के जीवन पर पड़ेगा।
संक्षेप में कहा जाए तो चीन का यह ₹15 लाख करोड़ का वॉटर प्रोजेक्ट भारत और पूरे दक्षिण एशिया के लिए गंभीर चुनौती है। भारत को समय रहते कदम उठाकर न केवल अपने जल संसाधनों की रक्षा करनी होगी, बल्कि पड़ोसी देशों के साथ सहयोग और अंतरराष्ट्रीय दबाव के माध्यम से स्थिरता बनाए रखनी होगी।
यह स्पष्ट है कि जल सिर्फ प्राकृतिक संसाधन नहीं, बल्कि भू-राजनीति का भी अहम हथियार बन चुका है। आने वाले समय में पानी पर नियंत्रण रखने वाले देशों की ताकत बढ़ेगी और इससे क्षेत्रीय विवादों की संभावना भी बढ़ सकती है। भारत के लिए जरूरी है कि वह न केवल अपनी नीतियों को सशक्त करे, बल्कि सतत जल संरक्षण और आधुनिक तकनीक के माध्यम से आने वाले संकटों का सामना करने के लिए तैयार रहे।
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