प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना “Make In India” को आज 11 साल पूरे हो गए। इस पहल ने भारत के उद्योग, रोजगार और निर्यात में बड़ा बदलाव लाने का काम किया है। अब भारत न केवल खिलौने और मोबाइल फोन बनाता है, बल्कि वर्ल्ड-क्लास ट्रेन, रक्षा उपकरण और टेक्नोलॉजी उत्पादों का भी प्रमुख निर्माता बन चुका है।
मेक इन इंडिया: शुरुआत से आज तक
2014 में लॉन्च हुई इस योजना का मकसद था विदेशी कंपनियों को भारत में निवेश के लिए आकर्षित करना और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना।
पिछले 11 सालों में भारत ने इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल, रेलवे, रक्षा और मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग जैसे क्षेत्रों में बड़ी प्रगति की। FDI (विदेशी निवेश) में रिकॉर्ड वृद्धि दर्ज की गई और लाखों युवाओं को रोजगार मिला।
क्या-क्या बदला?
खिलौने: पहले भारत खिलौनों का बड़ा आयातक था, लेकिन अब घरेलू उत्पादन से निर्यात बढ़ा है।
मोबाइल और स्मार्टफोन: एप्पल और सैमसंग जैसी कंपनियाँ भारत में उत्पादन कर रही हैं।
रेल और मेट्रो: आज भारत में बनी सेमी-हाईस्पीड ट्रेनें कई देशों को निर्यात हो रही हैं।
रक्षा क्षेत्र: स्वदेशी हथियार, ड्रोन और मिसाइल सिस्टम तैयार हो रहे हैं।
विशेषज्ञों की राय
उद्योगपति रतन टाटा ने कहा— “मेक इन इंडिया सिर्फ एक योजना नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर भारत का सपना है। इसने युवाओं को अवसर दिए और विदेशी निवेशकों को भारत पर भरोसा दिलाया।”
वहीं, स्टार्टअप उद्यमी पूजा अग्रवाल का कहना है—
“अगर सरकार ने लोकल मैन्युफैक्चरिंग को इतना सपोर्ट न किया होता, तो हम जैसे छोटे उद्योग कभी आगे नहीं बढ़ पाते।”
आम लोगों पर असर
दिल्ली के निवासी अजय मिश्रा बताते हैं—
“कुछ साल पहले तक अच्छे स्मार्टफोन चीन से आते थे। अब भारतीय ब्रांड्स और भारत में बने इंटरनेशनल फोन सस्ते और बेहतर मिल रहे हैं।”
पुणे के इंजीनियरिंग छात्र नेहा सिंह का कहना है—
“मेक इन इंडिया की वजह से हमारे कॉलेज में ही कई कंपनियाँ आकर रोजगार के मौके दे रही हैं।”
चुनौतियाँ भी कम नहीं
हालांकि उपलब्धियों के बावजूद, अभी भी भारत को इंफ्रास्ट्रक्चर, टेक्नोलॉजी अपग्रेड और स्किल डेवलपमेंट में लंबा रास्ता तय करना है। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर ये सुधार तेज़ी से हों, तो भारत दुनिया की सबसे बड़ी मैन्युफैक्चरिंग हब बन सकता है।
निष्कर्ष
11 सालों की इस यात्रा ने दिखा दिया कि भारत के लिए “मेक इन इंडिया” सिर्फ स्लोगन नहीं, बल्कि विकास की राह है। आने वाले समय में यह पहल भारत को “मेड इन इंडिया, मेड फॉर द वर्ल्ड” की पहचान दिला सकती है।