सितंबर माह में भारतीय शेयर बाजार में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) की निकासी बढ़कर ₹7,945 करोड़ हो गई है। इस बढ़ती निकासी के चलते विदेशी निवेशक अब साल 2025 में कुल ₹1.38 लाख करोड़ के शुद्ध आउटफ्लो के रिकॉर्ड पर पहुंच गए हैं।
क्यों बढ़ रही है FPI निकासी?
विशेषज्ञों का मानना है कि वैश्विक स्तर पर ब्याज दरों में वृद्धि, डॉलर की मजबूती और अमेरिका में H‑1B वीज़ा फीस में बढ़ोतरी जैसी नीतियाँ भारतीय बाजार से विदेशी निवेशकों की निकासी का मुख्य कारण बन रही हैं। डॉलर के मजबूत होने से निवेशकों को विदेशी लाभ कम दिखाई दे रहा है। वैश्विक वित्तीय अस्थिरता के कारण FPIs ने अपने निवेश को सुरक्षित रखने के लिए पैसा बाहर निकालना शुरू कर दिया है।
भारतीय बाजार पर असर
शेयर बाजार में विदेशी निवेशकों की निकासी से शॉर्ट टर्म में बाजार दबाव बढ़ता है। हालांकि, स्थानीय निवेशक और म्युचुअल फंड निवेश इस गिरावट को आंशिक रूप से संतुलित कर रहे हैं। BSE सेंसेक्स और NSE निफ्टी में मामूली गिरावट देखी गई।विशेषज्ञों का कहना है कि यह निकासी दीर्घकालिक निवेशक दृष्टिकोण से अस्थायी दबाव माने जाने योग्य है।
अगले कदम और रणनीति
बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि स्थिर राजनीतिक और आर्थिक नीतियों से FPI निवेश वापसी कर सकते हैं। भारतीय कंपनियों को भी मजबूत वित्तीय प्रदर्शन और लाभप्रदता दिखाना जरूरी होगा, ताकि विदेशी निवेशक भरोसा बनाए रखें। निवेशक सलाहकारों का सुझाव है कि घरेलू निवेशकों को लंबी अवधि के अवसरों पर ध्यान देना चाहिए और शॉर्ट टर्म बाजार उतार-चढ़ाव से घबराना नहीं चाहिए।
निष्कर्ष
सितंबर 2025 में FPIs द्वारा भारी निकासी ने भारतीय शेयर बाजार में अस्थायी दबाव पैदा किया है। इसके बावजूद, भारतीय बाजार की मजबूत मूलभूत ताकतें और घरेलू निवेशकों की भागीदारी इसे लंबे समय तक स्थिर रख सकती हैं।