भारत त्योहारों की धरती है और हर पर्व अपने भीतर खास संदेश समेटे हुए है। इन्हीं में से एक है दशहरा (विजयादशमी), जिसे पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई और असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक है।
दशहरे का महत्व
दशहरा हर साल आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था और माता सीता को लंका से मुक्त कराया था। यह पर्व हमें संदेश देता है कि चाहे बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंत में जीत हमेशा सत्य और धर्म की ही होती है।
धार्मिक मान्यताएँ
दशहरे को लेकर दो प्रमुख मान्यताएँ प्रचलित हैं:
श्रीराम द्वारा रावण वध और विजय प्राप्त करना।
देवी दुर्गा द्वारा महिषासुर का वध कर देवताओं को आतंक से मुक्त करना।
इसी कारण इसे विजयादशमी कहा जाता है।
कैसे मनाया जाता है दशहरा
भारत के अलग-अलग हिस्सों में दशहरा अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है।
उत्तर भारत में रावण दहन की परंपरा सबसे प्रसिद्ध है। रामलीला का मंचन कर भगवान राम की गाथा सुनाई जाती है और फिर विशालकाय पुतलों के दहन के साथ बुराई के अंत का संदेश दिया जाता है।
पश्चिम बंगाल, ओडिशा और असम में इसे दुर्गा पूजा के समापन के रूप में मनाया जाता है, जहां देवी दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है।
महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में इस दिन को नए कार्य और शिक्षा की शुरुआत के लिए शुभ माना जाता है।
सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व
दशहरा न केवल धार्मिक पर्व है बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक मेलजोल का अवसर भी है। मेले, झांकियां और रामलीला देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा होते हैं। यह पर्व भाईचारे, एकता और सकारात्मक सोच को बढ़ावा देता है।
अर्थव्यवस्था पर असर
त्योहारी सीजन में दशहरा खरीदारी और व्यापार के लिए भी शुभ माना जाता है। इस समय ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स और ज्वेलरी सेक्टर में बिक्री बढ़ जाती है। व्यापारी इसे समृद्धि और नए आरंभ का प्रतीक मानते हैं।
निष्कर्ष
दशहरा 2025 सिर्फ एक पर्व नहीं बल्कि प्रेरणा है कि बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंत में विजय अच्छाई की ही होती है। यह त्यौहार न केवल आस्था और परंपरा से जुड़ा है बल्कि समाज को सत्य, साहस और धर्म का मार्ग भी दिखाता है।