India और China के बीच लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवाद पर एक बार फिर नई बातचीत की शुरुआत हुई है। दोनों देशों के सैन्य और राजनयिक अधिकारी आमने-सामने आए हैं ताकि सीमा पर शांति बहाल की जा सके। सवाल यह है कि क्या इस बातचीत से समाधान निकल पाएगा या फिर तनाव और बढ़ेगा?
सीमा विवाद की पृष्ठभूमि
भारत-चीन सीमा विवाद दशकों पुराना है, जो मुख्य रूप से लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश और पूर्वी सेक्टर से जुड़ा हुआ है। 1962 के युद्ध के बाद से अब तक कई बार तनाव बढ़ा और बातचीत के दौर चले, लेकिन स्थायी समाधान नहीं निकला। 2020 में गलवान घाटी में हुए संघर्ष के बाद से रिश्ते और भी संवेदनशील हो गए।
नई बातचीत का एजेंडा
2025 में हो रही ताज़ा बैठक में दोनों देशों ने सीमा पर तनाव कम करने, गश्त के नियम तय करने और विश्वास बहाली पर चर्चा की। भारत ने स्पष्ट कहा कि सीमा पर शांति और विश्वास बहाली के बिना द्विपक्षीय संबंध सामान्य नहीं हो सकते। चीन की ओर से भी आर्थिक सहयोग और आपसी रिश्तों को मजबूत करने की बात कही गई।
भारत की रणनीति
भारत ने इस बातचीत में अपनी सुरक्षा, संप्रभुता और सैनिकों की सुरक्षा को प्राथमिकता दी है। सरकार का मानना है कि केवल बातचीत ही आगे का रास्ता है, लेकिन किसी भी तरह की ढिलाई भारत की सुरक्षा नीति के खिलाफ होगी। साथ ही भारत इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास और रक्षा आधुनिकीकरण पर भी फोकस कर रहा है।
अंतरराष्ट्रीय असर
भारत-चीन सीमा विवाद केवल दो देशों का मुद्दा नहीं है, बल्कि इसका असर एशियाई भू-राजनीति और वैश्विक व्यापार पर भी पड़ता है। अमेरिका, रूस और यूरोपीय देश इस विवाद को नजदीकी से देख रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह विवाद सुलझ गया तो एशिया में शांति और आर्थिक विकास की नई संभावनाएँ खुलेंगी।
निष्कर्ष
भारत और चीन के बीच हो रही नई बातचीत उम्मीद की एक किरण जरूर दिखाती है, लेकिन इतिहास बताता है कि सिर्फ बातचीत से समाधान नहीं निकलता। असली चुनौती है विश्वास और पारदर्शिता। अब देखना होगा कि यह बातचीत स्थायी शांति लाएगी या एक बार फिर तनाव गहराने का कारण बनेगी |