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Friday, November 14, 2025

रूस ने अचानक भारत को क्यों ऑफर किया था मिसाइल इंजन? ब्रह्मोस की दिलचस्प कहानी और पुतिन का दिल्ली दौरा

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रूस-भारत रिश्ते की पृष्ठभूमि: ब्रह्मोस की कहानी

सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल ब्रह्मोस भारत और रूस की साझेदारी का प्रतीक है, जिसे DRDO (भारत) और NPO Mashinostroyeniya (रूस) की संयुक्त कंपनी BrahMos Aerospace ने मिलकर बनाया था। नाम भी बड़े ही बिंबात्मक है: “Brah” भारत की नदी ब्रह्मपुत्र से, और “Mos” रूस की नदी मॉस्कवा (Moskva) से लिया गया है।शुरू में रूस ने भारत को मिशन-क्रूज़ मिसाइल तकनीक का इंगित इंजन दिया, क्योंकि भारत-रूस दोनों ने मिलकर ही टेक्निकल क्षमता विकसित की थी। शुरुआती दौर में बजट सीमित था और परीक्षण सुविधाएँ भी बहुत सीमित थीं। इंजीनियरिंग चुनौतियाँ (जैसे इंजन सिंक्रोनाइज़ेशन, गाइडेंस सिस्टम की दिक्कत) का सामना किया गया।

2001 में ब्रह्मोस का पहला सफल परीक्षण हुआ, जिसने दुनिया को भारत-रूसी रक्षा सहयोग की ताकत दिखा दी।आज ब्रह्मोस का लगभग 80% हिस्सा स्वदेशी बन चुका है — प्रपल्शन सिस्टम से लेकर ऑन-बोर्ड कंप्यूटर और वॉरहेड तक।

भारत में ब्रह्मोस के उत्पादन में हिस्सेदारी भी काफी बढ़ी है — हाल में यह लगभग 70% तक पहुंच चुकी है।

क्यों रूस ने तकनीक साझा की — “जनक” की भूमिका

रूस-भारत का यह मॉडल साझा निवेश और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर पर आधारित था। ब्रह्मोस की सफलता के पीछे इस साझेदारी की गहराई है। DRDO वैज्ञानिकों और रूसी इंजीनियरों ने मिलकर काम किया, जिससे दोनों देशों को रणनीतिक लाभ हुआ। जैसा कि DRDO के विशेषज्ञ डॉ. अतुल दिनकर राणे बताते हैं, शुरुआती दिनों में तकनीकी चुनौतियाँ थीं, लेकिन निरंतर सहयोग ने समस्या सुलझाने में मदद की। भारत-रूस रक्षा साझेदारी सिर्फ ब्रह्मोस तक सीमित नहीं है — यह मिग-विमानों, S-400 सिस्टम, और अन्य रक्षा प्लेटफार्मों में भी गहराई से फैली है।

पुतिन का दिल्ली दौरा: क्या है मायने?

पुतिन के दिल्ली दौरे को देखते हुए, यह समझना ज़रूरी है कि रक्षा-तकनीक साझेदारी दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण रणनीतिक स्तंभ है। ब्रह्मोस जैसी मिसाइल प्रणाली में रूस की हिस्सेदारी और तकनीक भारत की सामरिक शक्ति को मजबूत करती है, जिससे भारत का आत्मनिर्भर रक्षा उत्पादन (“Make in India”) और निर्यात क्षमताएं बढ़ती हैं। इसके अलावा, अगली पीढ़ी की मिसाइलें जैसे ब्रह्मोस-2 (हाइपरसोनिक) विकसित की जा रही हैं जिसमें रूसी प्रोपल्शन (इंजन) और भारत की सेंसर / एवियोनिक्स टेक्नोलॉजी का मिश्रण होगा।

यह नया प्रोजेक्ट दोनों देशों की रक्षा और तकनीकी साझेदारी को एक नए स्तर पर ले जाता है — और पुतिन का दौरा इस समझौते को और मजबूती दे सकता है।

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