‘जातिसूचक संवाद’ से जुड़े एक मामले में उच्च न्यायालय ने टीवी चैनल के अधिकारियों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया है। अदालत ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि प्रस्तुत तथ्यों और रिकॉर्ड के आधार पर यह स्पष्ट नहीं होता कि आरोपितों की मंशा किसी विशेष वर्ग की भावना को ठेस पहुंचाने की थी।
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में यह भी उल्लेख किया कि केवल संवाद या कार्यक्रम के प्रसारण मात्र से आपराधिक मंशा साबित नहीं होती, जब तक कि कानून के तहत आवश्यक तत्व स्पष्ट रूप से मौजूद न हों। अदालत ने माना कि इस मामले में प्रथम दृष्टया अपराध बनता नहीं है, इसलिए प्राथमिकी को जारी रखना न्यायोचित नहीं होगा।
इस फैसले के बाद टीवी चैनल के अधिकारियों को बड़ी राहत मिली है। कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह आदेश अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और आपराधिक दायित्व के बीच संतुलन को रेखांकित करता है, साथ ही ऐसे मामलों में प्राथमिकी दर्ज करने से पहले ठोस आधार की आवश्यकता पर भी जोर देता है।








