छठ पर्व के अवसर पर बिहार, झारखंड और छत्तीसगढ़ के बाजारों में खरीदारी का माहौल हर साल की तरह इस साल भी उत्सवपूर्ण रहा। लोकल उत्पादों की बढ़ती मांग ने छोटे व्यापारियों और कारीगरों के चेहरों पर मुस्कान ला दी। मिठाई की दुकानों, फल और सजावट की मार्केट्स में ग्राहकों की भीड़ देखने को मिली। त्योहार की खरीदारी में पारंपरिक और लोकल उत्पादों को प्राथमिकता दी गई। विशेष रूप से मिट्टी के दीये, छठ पूजा की थालियां, पारंपरिक मिठाइयाँ, फल और सजावटी आइटम इस साल सबसे ज्यादा बिके।
लोकल उत्पादों की बढ़ती मांग
छठ पर्व में लोकल उत्पादों की मांग में हर साल वृद्धि देखी जाती है, लेकिन 2025 में यह रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गई। ‘वोकल फॉर लोकल’ और स्थानीय उद्यमियों के प्रचार-प्रसार के कारण लोग अब ब्रांडेड उत्पादों की बजाय स्थानीय कारीगरी वाले उत्पाद खरीदना पसंद कर रहे हैं। कारीगरों ने बताया कि इस साल उनके उत्पादों की बिक्री में लगभग 30% की वृद्धि हुई है। विशेष रूप से हस्तशिल्प और मिट्टी के दीयों की मांग में यह उछाल देखा गया।
मिठाइयों और प्रसाद की बिक्री
छठ पर्व में कुरकुरे, चूड़ा, खजूर, गुड़ और सत्तू जैसी पारंपरिक मिठाइयाँ और प्रसाद अत्यधिक बिक रहे हैं। लोकल दुकानदारों ने इस अवसर पर नए फ्लेवर्स और पैकेजिंग में अपने उत्पाद लांच किए, जिससे ग्राहकों की संख्या और बिक्री दोनों बढ़ी। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर भी छठ के लिए लोकल उत्पादों की बिक्री में जबरदस्त वृद्धि देखी गई। ई-कॉमर्स वेबसाइट्स और ऐप्स ने डिस्काउंट और फेस्टिव ऑफर प्रदान किए, जिससे खरीदारी का पैटर्न डिजिटल प्लेटफॉर्म्स की ओर भी बढ़ा।
रोजगार और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
छठ पर्व की खरीदारी ने न केवल बड़े शहरों बल्कि ग्रामीण इलाकों में भी रोजगार के अवसर बढ़ाए। कारीगरों, दुकानदारों और छोटे व्यापारियों को इस त्योहारी सीजन में अस्थायी रोजगार और आय का नया स्रोत मिला। विशेष रूप से ग्रामीण कारीगर जो मिट्टी के दीयों, हाथ से बने सजावटी आइटम और पारंपरिक प्रसाद तैयार करते हैं, उन्होंने इस अवसर से काफी लाभ कमाया।
खरीदारी में रुझान और ग्राहक प्राथमिकता
इस साल के छठ पर्व में ग्राहकों ने स्थानीय और ऑथेंटिक उत्पादों को प्राथमिकता दी। प्लास्टिक-मुक्त थालियां और इको-फ्रेंडली सजावटी आइटम इस बार लोकप्रिय रहे। लोग न केवल घरों को सजाने बल्कि त्योहार को पर्यावरण-मित्र बनाने में भी रुचि ले रहे हैं। ग्राहक रुझान बताता है कि भविष्य में लोकल उत्पादों की मांग और बढ़ेगी। लोग अब सिर्फ बड़े ब्रांड्स के बजाय स्थानीय कारीगरों और छोटे व्यवसायियों से खरीदारी को महत्व देने लगे हैं।








