प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज एक महत्वपूर्ण घोषणा की कि केंद्र सरकार छठ पर्व (Chhath Puja) को UNESCO की विश्व धरोहर सूची (World Heritage List) में शामिल कराने के लिए गंभीरता से काम कर रही है। उन्होंने कहा कि यह पर्व भारतीय संस्कृति का अनमोल प्रतीक है, जो प्रकृति, आस्था, अनुशासन और पर्यावरण संरक्षण का सुंदर संगम दर्शाता है।
छठ पर्व: सूर्य उपासना से प्रकृति सम्मान तक
छठ पर्व को भारत का सबसे प्राचीन और पर्यावरण-मैत्री उत्सव माना जाता है। इस पर्व में लोग चार दिन तक चलने वाले अनुष्ठान में सूर्य देवता की उपासना करते हैं और सूर्यास्त तथा सूर्योदय के समय अर्घ्य अर्पित करते हैं। यह पर्व केवल पूजा नहीं बल्कि शरीर, मन और आत्मा की शुद्धि का भी प्रतीक है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि यह उत्सव न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि यह समाज को संयम, अनुशासन और पारिवारिक एकता का संदेश भी देता है। “छठ महापर्व भारतीय संस्कृति की गहराई को दर्शाता है। यह त्योहार प्रकृति के प्रति हमारे सम्मान और संतुलित जीवन के प्रतीक के रूप में विश्व के सामने जाना चाहिए,”
— प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
UNESCO में पंजीकरण की दिशा में भारत का कदम
संस्कृति मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, भारत सरकार ने छठ पर्व को UNESCO Intangible Cultural Heritage List में शामिल करने के लिए प्रस्ताव तैयार किया है। वर्तमान में इस पर संस्कृति मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और राज्य सरकारों के बीच समन्वय चल रहा है। सरकार का लक्ष्य है कि इसे 2026 के नामांकन चक्र में UNESCO को भेजा जाए। अगर यह प्रयास सफल होते हैं, तो छठ पर्व भारत की 15वीं अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर के रूप में दर्ज होगा इससे पहले कुंभ मेला, योग, नवरोज़, दुर्गा पूजा और रमनाथस्वामी मंदिर की रसलीला परंपरा जैसी भारतीय परंपराएँ UNESCO सूची में शामिल हो चुकी हैं।
भारत से विदेश तक फैला छठ पर्व का उत्सव
छठ पर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ में मनाया जाता है, लेकिन प्रवासी भारतीय समुदाय ने इसे दुनिया भर में भारत की पहचान बना दिया है।आज नेपाल, मॉरीशस, फिजी, त्रिनिदाद, अमेरिका, ब्रिटेन और खाड़ी देशों में बसे भारतीय समुदाय के लोग भी उत्साह से छठ पर्व मनाते हैं। भारत में गंगा, यमुना, कोसी, सोन, और नर्मदा नदियों के घाटों पर लाखों श्रद्धालु निर्जला व्रत रखकर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते हैं दिल्ली, मुंबई और कोलकाता जैसे महानगरों में प्रशासन द्वारा कृत्रिम तालाबों और स्वच्छ घाटों की व्यवस्था की जाती है ताकि लोग सुरक्षित और स्वच्छ वातावरण में पूजा कर सकें।
सरकार का लक्ष्य — छठ पर्व को ‘ग्रीन फेस्टिवल’ बनाना
प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी कहा कि सरकार छठ पर्व को “ग्रीन फेस्टिवल” के रूप में प्रोत्साहित कर रही है। इस वर्ष के उत्सव के दौरान स्वच्छ भारत मिशन और प्लास्टिक मुक्त भारत अभियान से जुड़े विशेष अभियान चलाए जा रहे हैं।स्थानीय प्रशासन, स्वयंसेवी संस्थाएँ और एनजीओ मिलकर घाटों की सफाई, जैविक दीपों का उपयोग और पर्यावरण-अनुकूल सामग्री को बढ़ावा दे रहे हैं। पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि अगर यह परंपरा वैश्विक स्तर पर पहचानी जाती है, तो यह विश्वभर में भारत की “इको-कल्चर” की मिसाल बन सकती है।
UNESCO मान्यता से बढ़ेगा पर्यटन और रोजगार
यदि छठ पर्व को UNESCO की विश्व धरोहर सूची में स्थान मिलता है, तो इसका असर पर्यटन, अर्थव्यवस्था और स्थानीय रोजगार पर भी पड़ेगा। विशेषज्ञों के अनुसार, इससे धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा, स्थानीय हस्तशिल्प को वैश्विक बाजार और सांस्कृतिक आयोजनों में निवेश के नए अवसर मिलेंगे। बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के लिए यह आर्थिक रूप से लाभकारी पहल साबित हो सकती है।
छठ पर्व की ऐतिहासिक जड़ें
इतिहासकार बताते हैं कि छठ पर्व की शुरुआत वैदिक काल में हुई थी। ऋग्वेद में सूर्य देव की आराधना का उल्लेख मिलता है, जिसे छठ पर्व की जड़ माना जाता है। यह परंपरा हजारों सालों से चली आ रही है और आज भी उसी श्रद्धा और अनुशासन के साथ निभाई जाती है। चार दिन के अनुष्ठान — नहाय-खाय, खरना, संध्या अर्घ्य और उषा अर्घ्य — शरीर और आत्मा की शुद्धि का प्रतीक हैं। यह पर्व परिवार में एकता, नारी शक्ति और आत्मसंयम का संदेश देता है।
भारत की सांस्कृतिक विरासत को नई ऊँचाई
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत आज अपनी सांस्कृतिक विरासत को विश्व मंच पर स्थापित करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। “हमारी परंपराएँ केवल धार्मिक नहीं, बल्कि मानवता और प्रकृति के बीच संतुलन की सीख देती हैं। UNESCO में छठ पर्व का नाम जुड़ना पूरे भारत के लिए गर्व का क्षण होगा।”








