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Wednesday, October 22, 2025

छत्तीसगढ़ में बांस से बन रहे इको-फ्रेंडली प्रोडक्ट्स: ग्रामीण अर्थव्यवस्था में नई रोजगार क्रांति

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छत्तीसगढ़ अपने घने जंगलों और प्राकृतिक संसाधनों के लिए जाना जाता है। अब यही राज्य बांस आधारित उद्योगों के माध्यम से “ग्रीन इकोनॉमी” की नई मिसाल बन रहा है। राज्य सरकार और स्थानीय स्व-सहायता समूहों के सहयोग से ग्रामीण क्षेत्रों में बांस से बने इको-फ्रेंडली प्रोडक्ट्स तैयार किए जा रहे हैं — जिससे न केवल पर्यावरण की रक्षा हो रही है, बल्कि हजारों ग्रामीणों को स्थायी रोजगार भी मिल रहा है।

बांस उद्योग से बदल रहा ग्रामीण जीवन

छत्तीसगढ़ के कई जिलों — जैसे कांकेर, बस्तर, कोरबा और रायगढ़ — में बांस की भरपूर उपलब्धता है। पहले यह बांस बिना उपयोग के जंगलों में सड़ जाता था, लेकिन अब ग्रामीण इसका उपयोग फर्नीचर, क्राफ्ट आइटम, बोतल, झूले, लैंप और डेकोरेटिव प्रोडक्ट्स बनाने में कर रहे हैं। इन उत्पादों की मांग अब न केवल छत्तीसगढ़ में, बल्कि दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु जैसे बड़े शहरों में भी तेजी से बढ़ रही है। स्थानीय महिला समूहों ने बांस के काम में दक्षता हासिल कर अपनी आय में 3 से 5 गुना तक बढ़ोतरी की है।

सरकार की पहल और समर्थन योजनाएं

छत्तीसगढ़ सरकार ने “बांस मिशन योजना” और “लघु वनोपज नीति 2025” के तहत ग्रामीणों को तकनीकी प्रशिक्षण, उपकरण और बाजार से जोड़ने की व्यवस्था की है।इसके अलावा, वन विभाग और राज्य बांस विकास बोर्ड की मदद से कई बांस प्रोसेसिंग यूनिट्स स्थापित की गई हैं।सरकार का लक्ष्य है कि अगले दो वर्षों में बांस आधारित उत्पादों से 10,000 से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार मिले और राज्य की ग्रीन इकॉनमी को बढ़ावा मिले।

इको-फ्रेंडली प्रोडक्ट्स की बढ़ती मांग

आज जब दुनिया प्लास्टिक से मुक्त होने की दिशा में आगे बढ़ रही है, तब बांस से बने प्रोडक्ट्स एक सस्टेनेबल विकल्प बनकर उभर रहे हैं। बांस से बने टूथब्रश, बोतल, स्ट्रॉ, बैग और डेकोरेटिव आइटम्स न केवल 100% बायोडिग्रेडेबल हैं, बल्कि देखने में भी आकर्षक हैं। इन प्रोडक्ट्स की लोकप्रियता ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स पर भी तेजी से बढ़ रही है। Amazon, Flipkart और Meesho पर “Made in Chhattisgarh” टैग के साथ बांस उत्पादों की बिक्री में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है।

स्थानीय कारीगरों की सफलता की कहानी

कांकेर जिले की सरोज बाई, जो पहले कृषि मजदूर थीं, अब बांस से हैंडमेड लैम्प और होम डेकोर आइटम्स बनाकर हर महीने ₹15,000 से अधिक कमा रही हैं। ऐसी ही कई महिलाओं और युवाओं ने बांस उद्योग से जुड़कर आत्मनिर्भरता की नई मिसाल कायम की है।

पर्यावरण और अर्थव्यवस्था दोनों के लिए फायदेमंद

बांस उद्योग केवल आय का स्रोत नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी बड़ा कदम है। बांस की खेती से कार्बन उत्सर्जन कम होता है और मिट्टी की गुणवत्ता सुधरती है। साथ ही, यह पारंपरिक प्लास्टिक उत्पादों का पर्यावरण-हितैषी विकल्प प्रदान करता है।

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