दुनिया की राजनीति और आर्थिक नीतियों का असर सिर्फ दो देशों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि पूरी ग्लोबल सप्लाई चेन पर पड़ता है। हाल ही में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन से आने वाले सामान पर भारी टैरिफ लगाने का ऐलान किया। इस फैसले के बाद चीन ने अपनी रणनीति बदली और भारतीय बाजार की ओर ध्यान बढ़ा दिया। नतीजा यह हुआ कि भारत में चीन से आयातित सामानों की बाढ़ आने लगी है।
क्यों बढ़ा चीन से भारत का आयात?
- अमेरिकी बाजार में रुकावट: टैरिफ के कारण चीन के लिए अमेरिका में अपने प्रोडक्ट्स बेचना महंगा पड़ रहा है। ऐसे में चीन को भारत एक बड़ा और उभरता हुआ बाजार नजर आ रहा है।
- सस्ते दाम पर उत्पाद: चीन के इलेक्ट्रॉनिक सामान, मशीनरी, खिलौने और कैमिकल्स भारत में बेहद सस्ते दाम पर उपलब्ध हो जाते हैं, जिससे भारतीय व्यापारी इन्हें खरीदने में दिलचस्पी दिखाते हैं।
- तेजी से बढ़ती मांग: भारत की बड़ी आबादी और लगातार बढ़ती खपत चीन के लिए एक सुनहरा मौका है।
भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए खतरा या फायदा?
- खतरा:
- भारत की घरेलू इंडस्ट्री पर दबाव बढ़ सकता है क्योंकि स्थानीय उत्पादक चीनी कंपनियों के दाम और बड़े पैमाने पर उत्पादन से मुकाबला नहीं कर पाते।
- लंबे समय में भारत का व्यापार घाटा और भी गहरा हो सकता है।
- फायदा:
- उपभोक्ताओं को सस्ते दाम पर प्रोडक्ट्स मिलते हैं।
- कुछ सेक्टर जैसे मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग और ऑटो पार्ट्स में भारत को तेजी से कच्चा माल उपलब्ध होता है, जिससे उत्पादन बढ़ता है।
भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती
भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह अपनी घरेलू उद्योगों को सुरक्षित रखते हुए विदेशी निवेश और व्यापार का संतुलन बनाए। सरकार “मेक इन इंडिया” और “आत्मनिर्भर भारत” जैसी योजनाओं के जरिए स्थानीय मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही है। लेकिन अगर चीन से आने वाला सस्ता माल लगातार बाजार पर हावी होता गया तो भारतीय कंपनियों के लिए टिक पाना मुश्किल हो सकता है।
आगे का रास्ता
भारत को चाहिए कि वह चीन से आयात पर निर्भरता घटाए और वैकल्पिक सप्लाई चेन विकसित करे। साथ ही, घरेलू उद्योगों को मजबूत करने के लिए सब्सिडी और प्रोत्साहन बढ़ाए। यह सिर्फ आर्थिक ही नहीं बल्कि रणनीतिक जरूरत भी है, क्योंकि भारत और चीन के बीच रिश्ते हमेशा सामान्य नहीं रहे हैं। चीन से बढ़ा आयात भारतीय उपभोक्ताओं के लिए अल्पकालिक फायदा जरूर ला सकता है, लेकिन दीर्घकालिक रूप से यह हमारी अर्थव्यवस्था और स्थानीय उद्योगों के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकता है। ऐसे में भारत को संतुलित नीति बनानी होगी ताकि देश की आर्थिक प्रगति पर कोई नकारात्मक असर न पड़े।
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