छठ पर्व का महत्व न केवल धार्मिक है, बल्कि यह प्रकृति के प्रति सम्मान और आभार व्यक्त करने का भी अवसर है। इस वर्ष पर्यावरण-मित्र छठ 2025 के तहत कई गाँवों और शहरों में नदी और तालाबों की सफाई अभियान की गई। आयोजकों ने सुनिश्चित किया कि पूजा स्थलों पर प्लास्टिक और अन्य प्रदूषक सामग्री का उपयोग न हो। सामुदायिक संगठनों और स्थानीय प्रशासन के सहयोग से नदी किनारे और तालाबों की सफाई अभियान आयोजित की गई। सफाई अभियान में स्थानीय लोग, छात्र और स्वयंसेवी संगठन सक्रिय रूप से शामिल हुए।
प्लास्टिक फ्री और इको-फ्रेंडली उत्सव
छठ पूजा में पारंपरिक सजावट, प्रसाद की थालियां और दीपक का इस्तेमाल किया जाता है। इस वर्ष पूरी तरह से प्लास्टिक फ्री और इको-फ्रेंडली सामग्री का इस्तेमाल किया गया। मिट्टी के दीये, बांस और पत्तियों से बनी थालियां और पुनः उपयोग योग्य सजावट को बढ़ावा दिया गया। इस पहल का उद्देश्य न केवल पर्यावरण को बचाना है, बल्कि लोगों में सतत और टिकाऊ त्योहार मनाने की आदत डालना है। आयोजकों ने बताया कि इस वर्ष लगभग 90% छठ पूजा स्थल प्लास्टिक फ्री बनाए गए।
समुदाय और जागरूकता कार्यक्रम
छठ पर्व को पर्यावरण-मित्र बनाने के लिए जागरूकता अभियान भी चलाए गए। स्कूलों और कॉलेजों में छठ पूजा और पर्यावरण संरक्षण पर कार्यशालाएँ आयोजित की गईं। बच्चों और युवाओं को बताया गया कि कैसे नदी और तालाबों में प्लास्टिक और कचरा डालना जल स्रोतों को नुकसान पहुंचाता है। स्थानीय मीडिया और सोशल प्लेटफॉर्म्स पर भी प्लास्टिक फ्री छठ के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए वीडियो और पोस्ट शेयर किए गए।
नदी और तालाबों में सफाई अभियान
इस साल छठ पर्व के अवसर पर नदी और तालाबों में सफाई अभियान विशेष रूप से जोरदार रहा। विभिन्न गाँवों और नगरपालिकाओं ने टीमों का गठन किया और पूजा स्थलों के आसपास के क्षेत्र को साफ किया। स्थानीय लोगों ने बताया कि इस अभियान से पानी की गुणवत्ता में सुधार हुआ और तालाबों में जमा कचरा भी साफ हुआ। अभियान में स्थानीय कारीगरों और दुकानदारों ने भी सहयोग दिया, जिससे छठ उत्सव के दौरान एक स्वच्छ और सुंदर वातावरण बना रहा।
पारंपरिक और प्राकृतिक उत्पादों का इस्तेमाल
प्लास्टिक फ्री छठ के तहत इस वर्ष मिट्टी, पत्तियों, बांस और प्राकृतिक सामग्री से बने उत्पादों का इस्तेमाल किया गया। प्रसाद की थालियां, सजावट और दीपक प्राकृतिक उत्पादों से बनाए गए, जिससे त्योहार का पारंपरिक स्वरूप भी बना रहा।स्थानीय कारीगरों को भी इस पहल से फायदा हुआ। उनका कहना है कि पर्यावरण-मित्र छठ से उनकी बिक्री बढ़ी और लोगों में लोकल और पारंपरिक उत्पादों के प्रति रुचि बढ़ी।
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