Food and Agriculture Organization (FAO) की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दशक में दुनिया भर में वनों की कटाई की गति धीमी हुई है, लेकिन जंगलों पर अब भी गंभीर दबाव बना हुआ है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कृषि विस्तार, खनन, और शहरीकरण के कारण विश्व के जंगल अब भी लगातार सिमट रहे हैं, जिससे जैव विविधता और पर्यावरण संतुलन पर खतरा मंडरा रहा है।
वनों की कटाई की रफ्तार में कमी
FAO के आंकड़ों के मुताबिक, 1990 से अब तक दुनिया ने लगभग 10 करोड़ हेक्टेयर वन खो दिए हैं। हालांकि, 2010 के बाद से कटाई की दर में लगभग 30% की कमी आई है।इसका श्रेय मुख्य रूप से एशिया और दक्षिण अमेरिका के उन देशों को दिया गया है जिन्होंने बड़े पैमाने पर वनीकरण और पुनःवनीकरण अभियान शुरू किए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, भारत, चीन और ब्राज़ील जैसे देशों ने वन क्षेत्र को स्थिर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
जंगलों पर बना हुआ है दबाव
हालांकि कटाई की रफ्तार घटी है, लेकिन जंगलों पर कृषि, लकड़ी व्यापार, और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स का दबाव लगातार बढ़ रहा है। अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के कई हिस्सों में गैर-कानूनी कटाई अब भी जारी है। बढ़ती आबादी और खाद्य मांग के कारण जंगलों को खेती योग्य भूमि में बदला जा रहा है। रिपोर्ट बताती है कि हर साल लगभग 1 करोड़ हेक्टेयर वन क्षेत्र अब भी नष्ट हो रहा है।
जैव विविधता पर खतरा
वनों की कटाई से न केवल पेड़-पौधे, बल्कि जानवरों और पक्षियों की प्रजातियाँ भी संकट में हैं। FAO ने चेतावनी दी है कि अगर मौजूदा स्थिति बनी रही, तो आने वाले दशकों में कई प्रजातियाँ विलुप्त हो सकती हैं। साथ ही, जंगलों के घटने से कार्बन अवशोषण क्षमता कम हो रही है, जिससे जलवायु परिवर्तन का खतरा और बढ़ रहा है।
समाधान और भविष्य की दिशा
FAO ने सभी देशों से आग्रह किया है कि वे:
- वन संरक्षण कानूनों को सख्ती से लागू करें।
- स्थायी कृषि और हरित उद्योगों को बढ़ावा दें।
- लोकल कम्युनिटीज़ को वन प्रबंधन में शामिल करें।
- वनों की पुनर्स्थापना के लिए “Green Restoration Programs” को गति दें।
- संगठन का कहना है कि यदि सभी देश मिलकर काम करें तो 2030 तक वनों की हानि को पूरी तरह रोका जा सकता है।