वन नेशन वन इलेक्शन पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद समिति के प्रस्ताव को मंगलवार को हुई बैठक में मोदी कैबिनेट ने मंजूरी दे दी। रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली कमेटी ने साल 2029 में पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की है। प्रस्ताव को मंजूरी देने के बाद मोदी सरकार अब संसद के शीतकालीन सत्र में इसपर एक बिल ला सकती है। संसद में ही सरकार का का असली टेस्ट होगा।
बिल को संसद के ऊपरी सदन यानी राज्यसभा से पास कराने में सरकार को मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ेगा। हालांकि असली लड़ाई लोकसभा में होगी। लोकसभा में आंकड़ों की बाजी लड़ाई मुश्किल दिख रही है। निचले सदन में जब बिल पर वोटिंग की बारी आएगी तो सरकार को 69 सांसदों की जरूरत पड़ेगी जो उसके साथ खड़े रहें।
कोविंद समिति ने कुल 62 राजनीतिक दलों से एक राष्ट्र एक चुनाव पर राय मांगी थी, जिनमें से 47 ने अपने जवाब भेजे, जबकि 15 ने जवाब नहीं दिया। 47 राजनीतिक पार्टियों में से 32 पार्टियों ने कोविंद समिति की सिफारियों का समर्थन किया, जबकि 15 दल विरोध में रहे। जिन 32 पार्टियों ने कोविंद समिति की सिफारिशों का समर्थन किया उसमें ज्यादातर बीजेपी की सहयोगी पार्टियां हैं और या तो उनका उसके प्रति नरम रुख रहा है। नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी जो मोदी सरकार 2.0 में साथ खड़ी रहती थी उसका रुख भी अब बदल गया है। वहीं, जिन 15 पार्टियों ने पैनल की सिफारिशों का विरोध किया उसमें कांग्रेस, सपा, आप जैसी पार्टियां हैं।
लोकसभा चुनाव-2024 के बाद 271 सांसदों ने कोविंद समिति की सिफारिशों का समर्थन किया। इसमें से 240 सांसद बीजेपी के हैं. लोकसभा में एनडीए के आंकड़े की बात करें तो ये 293 है. जब ये बिल लोकसभा में पेश होगा और वोटिंग की बारी आएगी तो उसे पास कराने के लिए सरकार को 362 वोट या दो तिहाई बहुमत की जरूरत पड़ेगी। संवैधानिक विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को अगर और गैर-एनडीए दलों का साथ मिल जाता है तो भी 362 का आंकड़ा छूने की संभावना नहीं है। हालांकि ये स्थिति तब होगी जब वोटिंग के दौरान लोकसभा में फुल स्ट्रेंथ रहती है। लेकिन 439 सांसद (अगर 100 सांसद उपस्थित नहीं रहते हैं) ही वोटिंग के दौरान लोकसभा में रहते हैं तो 293 वोटों की जरूरत होगी। ये संख्या एनडीए के पास है. इसका मतलब है कि अगर विपक्षी पार्टियों के सभी सांसद वोटिंग के दौरान लोकसभा में मौजूद रहते हैं तो संविधान संशोधन बिल गिर जाएगा।
राज्यसभा की बात करें तो यहां पर भी हालात सरकार के पक्ष में नहीं दिख रहे हैं। विधेयक को ऊपरी सदन से पास कराने के लिए 164 सांसदों की जरूरत पड़ेगी ( 245 का दो तिहाई). लेकिन अभी राज्यसभा में 234 सांसद हैं। एनडीए के पास 115 सांसद हैं. इसमें से 6 नामित सांसदों को जोड़ दें तो ये आंकड़ा 121 हो जाता है। अकेले बीजेपी के 96 सांसद हैं। राज्यसभा में वोटिंग के दौरान अगर सभी सदस्य मौजूद रहते हैं तो बहुमत का आंकड़ा 156 होगा।
अगर 2029 में एक साथ देशभर में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव होते हैं तो कई राज्यों की विधानसभा को कार्यकाल पूरा होने से पहले ही भंग करना पड़ेगा। देश में 2023 में 10 राज्यों में नई विधानसभा का गठन हुआ है, जिनका कार्यकाल 2028 तक है। ऐसे में इन राज्यों में 2028 में यहां पर फिर से चुनाव से होंगे, लेकिन 2029 में ये सभी विधानसभाएं भंग हो जाएंगी। इसका मलतब है कि इन 10 राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल केवल एक साल का रहेगा। ये राज्य हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, कर्नाटक, तेलंगाना, मेघालय, नगालैंड, त्रिपुरा और मिजोरम हैं।
इसके अलावा कुछ ऐसे भी राज्य हैं, जहां पर 2027 में विधानसभा चुनाव होना है. ऐसे में वहां पर सरकार का कार्यकाल दो साल का ही रहेगा। ये राज्य उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब और गुजरात हैं। वहीं, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम और केरल में 2026 में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में इन राज्यों की सरकारों का कार्यकाल तीन साल या उससे भी कम समय तक सकता है। बिहार में अगले साल और दिल्ली में अगले साल फरवरी में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में इन राज्यों की सरकारों का कार्यकाल 4 साल तक होगा।