America-India के रिश्ते हमेशा से उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं। कभी दोनों देशों के बीच दोस्ती का माहौल बनता है तो कभी ऐसे फैसले सामने आ जाते हैं, जो संबंधों में खटास पैदा कर देते हैं। ट्रंप प्रशासन के दौरान भारत को कई बार इसका सामना करना पड़ा।
पहले टैरिफ से झटका
ट्रंप सरकार ने भारतीय उत्पादों पर टैरिफ (Import Tariff) बढ़ाकर बड़ा दबाव बनाया था। भारत से अमेरिका को जाने वाले स्टील, एल्युमिनियम और कई दूसरे सामान पर अचानक से टैक्स बढ़ गया। इसका सीधा असर भारतीय कारोबारियों और मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री पर पड़ा।
चाबहार पोर्ट को लेकर नाराज़गी
भारत-ईरान के चाबहार पोर्ट प्रोजेक्ट को अमेरिका ने कई बार शक की नजर से देखा। यह पोर्ट भारत के लिए रणनीतिक रूप से बेहद अहम है, क्योंकि यह पाकिस्तान को बाईपास करके अफगानिस्तान और मध्य एशिया से जुड़ने का रास्ता खोलता है। लेकिन अमेरिकी दबाव की वजह से कई बार इस प्रोजेक्ट में रुकावटें आईं। भारत को कूटनीतिक स्तर पर काफी समझौते करने पड़े।
अब H1B वीज़ा पर चोट
अमेरिका में भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स की बड़ी संख्या काम करती है। H1B वीज़ा उन्हीं के लिए रोजगार का सबसे बड़ा जरिया है। लेकिन ट्रंप प्रशासन ने इस वीज़ा को लेकर नियम सख्त कर दिए।
- नए आवेदन पर रोक लगाने जैसी नीतियां बनीं।
- पहले से मौजूद कर्मचारियों की नौकरी पर भी संकट खड़ा हो गया।
- भारत के लाखों युवाओं को इसका सीधा नुकसान उठाना पड़ा।
भारतीयों की नाराज़गी और उम्मीदें
इन फैसलों से भारत में गुस्सा भी दिखा और चिंता भी। कारोबारी वर्ग को टैरिफ ने परेशान किया, रणनीतिक मोर्चे पर चाबहार की रुकावट खली और आम युवाओं को H1B वीज़ा की मार झेलनी पड़ी।
लेकिन साथ ही, उम्मीद यह भी है कि आने वाले वक्त में अमेरिका और भारत एक-दूसरे की ज़रूरतों को समझकर संतुलित रिश्ता आगे बढ़ाएंगे। आखिरकार, दोनों लोकतंत्र एक-दूसरे के लिए साझेदार भी हैं और बाज़ार भी।
टैरिफ से शुरू हुई टकराहट चाबहार और H1B वीज़ा तक आ गई है। सवाल यही है कि क्या भारत-अमेरिका के रिश्ते भविष्य में और मजबूत होंगे या फिर यह तनाव लंबा चलेगा।
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