भारतीय रुपया सोमवार को डॉलर के मुकाबले अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुँच गया। इंटरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में रुपया ₹88.76 प्रति डॉलर पर बंद हुआ। लगातार विदेशी पूँजी निकासी (FPI Outflow) और कॉरपोरेट डॉलर मांग ने रुपये पर दबाव बढ़ा दिया है।
क्यों टूटा रुपया?
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों की निकासी: सितंबर में अब तक हजारों करोड़ रुपये विदेशी निवेशकों ने भारतीय शेयरों से निकाले हैं।
कॉरपोरेट डॉलर डिमांड: बड़ी कंपनियों की विदेशी पेमेंट और ऑयल इम्पोर्ट बिल ने डॉलर की मांग तेज कर दी है।
वैश्विक कारक: अमेरिकी बॉन्ड यील्ड में बढ़ोतरी और डॉलर इंडेक्स की मजबूती से निवेशकों ने सुरक्षित निवेश की ओर रुख किया है।
RBI की भूमिका
सूत्रों के मुताबिक, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने सरकारी बैंकों के माध्यम से बाजार में डॉलर बेचे, ताकि रुपये की गिरावट को सीमित किया जा सके। हालांकि, बाजार जानकारों का मानना है कि जब तक विदेशी निकासी रुकती नहीं, दबाव जारी रहेगा।
बाजार पर असर
शेयर बाजार: सेंसेक्स और निफ्टी दोनों पर रुपये की कमजोरी का असर दिखा और कारोबार सुस्त रहा।
निर्यातक बनाम आयातक:
आईटी और फार्मा जैसे निर्यातक सेक्टरों को रुपये की कमजोरी से फायदा मिल सकता है।
वहीं, ऑटो और पेट्रोकेमिकल जैसे आयात-निर्भर सेक्टरों पर लागत का बोझ बढ़ेगा।
आगे क्या?
विशेषज्ञों का अनुमान है कि अगर अक्टूबर में विदेशी पूँजी प्रवाह सुधरता है तो रुपया स्थिर हो सकता है।
RBI की अगली मौद्रिक नीति और वैश्विक ब्याज दरों की दिशा रुपये के लिए अहम साबित होगी।
निवेशकों को शॉर्ट टर्म उतार-चढ़ाव से बचते हुए लॉन्ग टर्म रणनीति अपनाने की सलाह दी जा रही है।