भारत का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक पर्व—लोकसभा चुनाव 2025—तेजी से नज़दीक आ रहा है। चुनाव आयोग ने संकेत दिए हैं कि अप्रैल–मई 2025 में मतदान हो सकता है। ऐसे में सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने अपने प्रचार अभियान की शुरुआत कर दी है।
सत्ता पक्ष की रणनीति
सत्तारूढ़ पार्टी अपने दस साल के कामकाज और विकास योजनाओं को जनता के बीच रखने की कोशिश कर रही है। प्रधानमंत्री और कैबिनेट मंत्री लगातार रैलियों में भाग ले रहे हैं और देशभर में इंफ्रास्ट्रक्चर, डिजिटल इंडिया, महिला सशक्तिकरण और गरीब कल्याण योजनाओं को बड़ी उपलब्धि बताकर जनता से समर्थन मांग रहे हैं।
विपक्ष का फोकस
विपक्षी दल महंगाई, बेरोजगारी और किसानों की समस्याओं को प्रमुख मुद्दा बना रहे हैं। विपक्ष का आरोप है कि सरकार ने युवाओं को पर्याप्त रोजगार देने का वादा पूरा नहीं किया और लगातार बढ़ती कीमतों ने आम आदमी की जेब पर असर डाला है। कई क्षेत्रीय दल भी अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए स्थानीय मुद्दों को जोर-शोर से उठा रहे हैं।
युवाओं और पहली बार वोट देने वालों पर नज़र
विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार चुनाव में युवाओं की भूमिका बेहद अहम होगी। अनुमान है कि 3 करोड़ से अधिक नए मतदाता पहली बार वोट डालेंगे। यही कारण है कि राजनीतिक दल सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे इंस्टाग्राम, फेसबुक, एक्स (Twitter) और यूट्यूब पर ज्यादा फोकस कर रहे हैं।
गठबंधन राजनीति का असर
भारत की राजनीति में गठबंधन हमेशा से निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं। 2025 के चुनाव में भी क्षेत्रीय दल महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में छोटे दलों का प्रभाव नतीजों की दिशा तय कर सकता है।
सोशल मीडिया और डिजिटल कैंपेन
इस चुनाव में सोशल मीडिया को सबसे बड़ा प्रचार मंच माना जा रहा है। राजनीतिक पार्टियां डिजिटल विज्ञापन, लाइव रैली, ऑनलाइन मेनिफेस्टो और छोटे वीडियो संदेशों के जरिए मतदाताओं तक पहुंच रही हैं। विश्लेषकों का कहना है कि डिजिटल प्रचार अब पारंपरिक रैलियों जितना ही प्रभावी हो चुका है।
जनता की उम्मीदें
जनता इस बार ऐसी सरकार चाहती है जो रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और महंगाई नियंत्रण पर ठोस कदम उठाए। ग्रामीण भारत किसानों की आय बढ़ाने और MSP को मजबूत करने की मांग कर रहा है, जबकि शहरी मतदाता रोजगार और महंगाई पर ध्यान चाहते हैं।
निष्कर्ष
लोकसभा चुनाव 2025 सिर्फ राजनीतिक दलों के लिए ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए अहम मोड़ साबित होगा। सत्ता पक्ष अपनी उपलब्धियां गिना रहा है, जबकि विपक्ष जनता के असंतोष को मुद्दा बना रहा है। अब देखना होगा कि लोकतंत्र का यह महापर्व किस ओर करवट लेता है।