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Navratri 2024: विदेशों में भी मनाई जाती है नवरात्रि, भक्तों का उमड़ता है सैलाब, जानिए मां आदिशक्ति के 9 शक्तिपीठ के बारे में जो भारत से हैं बाहर

धरती पर मां आदिशक्ति के कुल 51 शक्तिपीठ हैं, जो हिन्दू संप्रदाय के लोगों का आस्था का केंद्र है. नवरात्र के पावन अवसर पर आज हम अपने पाठकों को इन सभी शक्तिपीठों के पीछे की पौराणिक कथा और पूरी जानकारी बताने जा रहे हैं.

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पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव और माता शक्ति के विवाह से माता सति के पिता- प्रजापति दक्ष नाराज थे. एक बार प्रजापति दक्ष ने कनखल (हरिद्वार) में ‘बृहस्पति सर्व’ नामक यज्ञ रचाया. उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन उन्‍होंने जान-बूझकर अपने जमाता भगवान भगवान शंकर को नहीं बुलाया.

भगवान शिव जी की पत्नी और दक्ष की पुत्री सती पिता द्वारा न बुलाए जाने पर और भोलेनाथ के रोकने पर भी यज्ञ में भाग लेने पहुंच गईं. यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा और पिता से उग्र विरोध प्रकट किया. इस पर प्रजापति दक्ष ने शिव जी का अपमान कर दिया. अपने पति के अपमान से माता सति का हृदय आहत हुआ और क्रोधिक होकर माता ने अपनी ही शक्ती से आत्मदाह कर लिया.

भगवान शिव को इस दुर्घटना का आभास होते ही वो यज्ञ स्थल पहुंचे और देखा कि माता सति अपना देह त्याग चुकी थीं. इससे क्रोधित होकर भगवान शिव भयंकर तांडव करने के लिए उद्यत हो गए. भगवान के आदेश पर उनके गणों के उग्र कोप से भयभीत सारे देवता ऋषिगण यज्ञस्थल से भाग गये. शिव जी ने यज्ञकुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कंधे पर उठा लिया और दुःखी हो कर पृथ्‍वी पर विरह वेदना में यहां-वहां भटकने लगे. भगवान शिव के क्रोध से पूरी प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा था. तब सम्पूर्ण विश्व को प्रलय से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर को कई टुकड़े कर दिये, ताकी भगवान शिव पूरी तरह विरह से बाहर आ सकें. माता सति के शरीर के टुकड़े जिन जगहों पर गिरे वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए .

Navratri 2024: 51 शक्तिपीठों की पूरी जानकारी से पहले जानिए विदेशों में माता के शक्ती पीठ कहां-कहां स्थित हैं और किन नामों से उन्हें जाना जाता है…

बांग्लादेश में चार शक्तिपीठ स्थित हैं…

यहां देवी सती की नाक गिरी थी. यह बांग्लादेश के बरिसाल जिले से 20 कि.मी, दूर शिकारपुर में स्थित है. यहां देवी को सुनन्दा, देवी तारा के नाम से भी जाना जाता है. यहां के भैरव को त्रयंबक भैरव कहा जाता है

यह बांग्लादेश के भवानीपुर के बेगड़ा में स्थित है. यहां देवी के बाएं पैर का पायल गिरी थी. यहां देवी को अपर्णा के रूप में जाना जाता है और भैरव शिव वामन के नाम से जाने जाते हैं.

यह बांग्लादेश के चटगांव में स्थित है. यहां देवी की दाहिनी भुजा गिरी थी. यहां की शक्ति को भवानी और भैरव को चंद्रशेखर कहा जाता है.

यह बांग्लादेश के जैसोर खुलना नामक स्थान में स्थित है. यहां देवी की बायीं हथेली गिरी थी. यहां की शक्ति को यशोरेश्वरी और भैरव को चंद्र कहा जाता है.

पाकिस्तान में एक शक्तिपीठ स्थापित है, जिसे हिंगलाज शक्तिपीठ कहा जाता है. यहां देवी सती का सिर गिरा था. यह पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित है, जो करांची से 125 कि.मी. दूर है. यहां की देवी को कोट्टरी और भैरव को भीमलोचन के नाम से जाना जाता है.

तिब्बत में मानसरोवर के पास मानस शक्तिपीठ स्थापित है. इस स्ठान पर देवी की दाहिनी हथेली गिरी थी. इस शक्तिपीठ की देवी को दक्षायणी और भैरव को अमर कहा जाता है.

नेपाल में दो शक्तिपीठ स्थापित हैं. गुह्येश्वरी शक्तिपीठ और गण्डकी शक्तिपीठ.

यह शक्तिपीठ काठमांडू में स्थित है. यहां देवी के दोनों घुटने गिरे थे. यह पशुपति मंदिर के पास स्थित है. यहां की देवी को महामाया और भैरव को कपाल कहा जाता है.

यह नेपाल के गण्डकी नदी के पास स्थित है. इस स्ठान पर देवी का कपोल गिरा था. यहां की देवी को गण्डकी और भैरव को चक्रपाणि कहा जाता है.

यहां एक शक्तिपीठ स्थापित है, जिसे लंका शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है. श्रीलंका में स्थित इस शक्तिपीठ में देवी को इंद्राक्षी और भैरव को राक्षेश्वर कहा जाता है…

बाकी के सभी 42 शक्तिपीठ भारत के विभिन्न राज्यों में स्थित हैं. जिनके नाम और स्थान आप वीडियो के कैप्शन में पढ़ सकते हैं.

  1. हिंगुल या हिंगलाज, कराची, पाकिस्तान से लगभग 125 किमी उत्तर-पूर्व में स्‍थित है यहां देवी का ब्रह्मरंध्र (सिर का ऊपरी भाग) गिरा. यहां देवी कोट्टरी नाम से स्‍थापित हैं.
  2. शर्कररे, कराची पाकिस्तान के सुक्कर स्टेशन के निकट मज्ञैजूद है वैसे इसे नैनादेवी मंदिर, बिलासपुर में भी बताया जाता है. यहां देवी की आंख गिरी थी और वे महिष मर्दिनी कहलाती हैं.
  3. सुगंध, बांग्लादेश में शिकारपुर, बरिसल से 20 किमी दूर सोंध नदी के किनारे गिरी देवी की नासिका और उनका नाम है सुनंदा.
  4. अमरनाथ, पहलगांव, काश्मीर के पास देवी का गला गिरा था और वे यहां महामाया के रूप में स्‍थापित हैं.
  5. ज्वाला जी, कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश में हैं जहां देवी की जीभ गिरी थी उनका नाम पड़ा सिधिदा या अंबिका.
  6. जालंधर, पंजाब में छावनी स्टेशन निकट देवी तलाब में उनका बांया वक्ष गिरा और वे त्रिपुरमालिनी नाम से स्‍थापित हुईं.
  7. अम्बाजी मंदिर, गुजरात में देवी का हृदय गिरा था और वे अम्बाजी कहलाईं.
  8. गुजयेश्वरी मंदिर, नेपाल, में पशुपतिनाथ मंदिर के साथ ही है जहां देवी के दोनों घुटने गिरे बताये जाते हैं. यहां देवी का नाम महाशिरा है.
  9. मानस, कैलाश पर्वत, मानसरोवर, में तिब्ब्त के निकट एक पाषाण शिला के रूप में मौजूद हैं देवी. यहां उनका दायां हाथ गिरा और वे दाक्षायनी कहलाईं.
  10. बिराज, उत्कल, उड़ीसा में देवी की नाभि गिरी और वे विमला बनीं.
  11. गंडकी नदी के तट पर, पोखरा, नेपाल में मुक्तिनाथ मंदिर में देवी का मस्तक गिरा और वे गंडकी चंडी कहलाईं.
  12. बाहुल, अजेय नदी तट, केतुग्राम, कटुआ, वर्धमान जिला, में पश्चिम बंगाल से 8 किमी दूर बहुला देवी हैं जहां देवी का बायां हाथ गिरा था.
  13. उज्जनि, गुस्कुर स्टेशन से वर्धमान जिला, पश्चिम बंगाल में दायीं कलाई गिरी और मंगल चंद्रिका देवी की स्‍थापना हुई.
  14. माताबाढ़ी पर्वत शिखर, निकट राधाकिशोरपुर गाव, उदरपुर, त्रिपुरा में दायां पैर गिरा और देवी त्रिपुर सुंदरी बनीं.
  15. छत्राल, चंद्रनाथ पर्वत शिखर, निकट सीताकुण्ड स्टेशन, चिट्टागौंग जिला, बांग्लादेश में गिरी दांयी भुजा और नाम पड़ा भवानी.
  16. त्रिस्रोत, सालबाढ़ी गांव, बोडा मंडल, जलपाइगुड़ी, पश्चिम बंगाल में मां का बायां पैर गिरा और वे भ्रामरी देवी कहलाईं.
  17. कामगिरि, कामाख्या, नीलांचल पर्वत, गुवाहाटी, असम में उनकी योनि गिरी और वे कामाख्या रूप में प्रसिद्ध हुईं.
  18. जुगाड़्या, खीरग्राम, वर्धमान जिला, पश्चिम बंगाल में दायें पैर का अंगूठा गिरा और नाम मिला जुगाड्या.
  19. वहीं कालीपीठ, कालीघाट, कोलकाता में दायें पैर का अंगूठा गिरा और वे मां कालिका बनीं.
  20. प्रयाग, संगम, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में मां ललिता के हाथ की अंगुली गिरी.
  21. जयंती नाम से स्‍थापित है कालाजोर भोरभोग गांव, खासी पर्वत, जयंतिया परगना, सिल्हैट जिला, बांग्लादेश में देवी जहां उनकी बायीं जंघा गिरी.
  22. किरीट नाम से ही स्‍पष्‍ट है कि किरीटकोण ग्राम, मुर्शीदाबाद जिला, पश्चिम बंगालमें देवी का मुकुट गिरा और वे विमला कहलाईं.
  23. मणिकर्णिका घाट, काशी, वाराणसी, उत्तर प्रदेश में उनकी मणिकर्णिका गिरी और वे विशालाक्षी और मणिकर्णी रूप में प्रसिद्ध हुईं.
  24. कन्याश्रम, भद्रकाली मंदिर, कुमारी मंदिर, तमिल नाडु में देवी की पीठ गिरी और वे श्रवणी कहलाईं.
  25. कुरुक्षेत्र, हरियाणा में गिरी एड़ी और माता सावित्री का मंदिर स्‍थापित हुआ.
  26. मणिबंध, गायत्री पर्वत, पुष्कर, अजमेर में देवी की दो पहुंचियां गिरी थीं. यहां देवी का नाम है गायत्री.
  27. श्री शैल, जैनपुर गांव, के पास सिल्हैट टाउन, बांग्लादेश में देवी का गला गिरा, यहां उनका नाम महालक्ष्मी है.
  28. कांची, कोपई नदी तट पर पश्चिम बंगाल में देवी की अस्थि गिरी और वे देवगर्भ रूप में स्‍थापित हैं.
  29. मध्य प्रदेश के अमरकंटक में कमलाधव नाम के स्‍थान पर शोन नदी के किनारे एक गुफा में, मां काली स्‍थापित हैं जहां उनका बायां नितंब गिरा.
  30. शोन्देश, अमरकंटक, मध्य प्रदेश में उनका दायां नितंब गिरा और नर्मदा नदी का उद्गम होने के कारण देवी नर्मदा कहलाईं.
  31. रामगिरि, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश में दायां वक्ष गिरा नाम पड़ा शिवानी.
  32. वृंदावन, भूतेश्वर महादेव मंदिर के पास उत्तर प्रदेश में दवी के केशों का गुच्छ और चूड़ामणि गिरी. वे यहां उमा नाम से प्रसिद्ध हुईं.
  33. शुचि, शुचितीर्थम शिव मंदिर के पास कन्याकुमारी, तमिल नाडु में ऊपरी दाढ़ गिरी नाम पड़ा नारायणी.
  34. वहीं पंचसागर में उनकी निचली दाढ़ गिरी नाम पड़ा वाराही.
  35. बांग्लादेश के करतोयतत, भवानीपुर गांव में उनकी बायीं पायल गिरी और वे अर्पण नाम से जानी गई.
  36. श्रीशैलम, कुर्नूल जिला आंध्र प्रदेश में दायीं पायल गिरी और स्‍थापित हुईं देवी श्री सुंदरी.
  37. पश्चिम बंगाल के विभाष, तामलुक, पूर्व मेदिनीपुर जिला में देवी कपालिनी (भीमरूप) की बायीं एड़ी गिरी.
  38. प्रभास, जूनागढ़ जिला, गुजरात में देवी चंद्रभागा का आमाशय गिरा.
  39. भैरव पर्वत पर क्षिप्रा नदी के किनारे उज्जयिनी, मध्य प्रदेश में देवी के ऊपरी होंठ गिरे यहां वे अवंति नाम से जानी जाती हैं.
  40. जनस्थान, नासिक, महाराष्ट्र में ठोड़ी गिरी और देवी भ्रामरी रूप में स्‍थापित हुईं.
  41. सर्वशैल राजमहेंद्री, आंध्र प्रदेश में उनके गाल गिरे और देवी को नाम मिला राकिनी या विश्वेश्वरी.
  42. बिरात, राजस्थान में उनके बायें पैर की उंगुली गिरी. देवी कहलाईं अंबिका.
  43. रत्नावली, हुगली, पश्चिम बंगाल में देवी का दायां कंघा गिरा और उनका नाम है कुमारी.
  44. मिथिला, भारत-नेपाल सीमा पर देवी उम का बायां कंधा गिरा था.
  45. नलहाटी, बीरभूम, पश्चिम बंगाल में पैर की हड्डी गिरी और देवी का नाम पड़ा कलिका देवी.
  46. कर्नाट में देवी जय दुर्गा के दोनों कान गिरे.
  47. वक्रेश्वर पश्चिम बंगाल में भ्रूमध्य गिरा और वे कहलाईं महिषमर्दिनी.
  48. यशोर, ईश्वरीपुर, खुलना जिला, बांग्लादेश हाथ एवं पैर यशोरेश्वरी
  49. अट्टहास, पश्चिम बंगाल में फुल्‍लारा देवी के होंठ गिरे.
  50. नंदीपुर, पश्चिम बंगाल में मां नंदनी के गले का हार गिरा था.
  51. लंका में अज्ञात स्‍थान पर, (एक मतानुसार, मंदिर ट्रिंकोमाली में है, पर पुर्तगली बमबारी में ध्वस्त हो चुका है और महज एक स्तंभ शेष है. यह प्रसिद्ध त्रिकोणेश्वर मंदिर के निकट है) देवी की पायल गिरी यहां वे इंद्रक्षी कहलाती हैं.

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