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भगत सिंह के नाम पर लाहौर में चौराहे का नाम रखने पाकिस्तान का वकील लड़ रहा है कानूनी लड़ाई

बठिंडा। दूसरे देश के स्वतंत्रता सेनानी के लिए आवाज उठाना और उनके नाम पर एक चौराहे का नाम रखने की मांग करना कोई आसान काम नहीं है, लेकिन पाकिस्तान में एक वकील एक दशक से भी अधिक समय से भगत सिंह के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं. वकील इम्तियाज रशीद कुरैशी को कट्टरपंथियों के हमले का सामना करना पड़ा, लेकिन वे इससे विचलित हुए बिना अपनी लड़ाई जारी रखे हुए हैं.

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कुरैशी को पहली बार मई 2013 में भगत सिंह से जुड़े कानूनी मामले का सामना करना पड़ा था, जब उन्होंने अपने पिता एडवोकेट अब्दुल रशीद कुरैशी के साथ मिलकर लाहौर उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी, जिसमें तत्कालीन सहायक पुलिस अधीक्षक जॉन पी सॉन्डर्स की हत्या से संबंधित 1928 के लाहौर षडयंत्र मामले को फिर से खोलने की मांग की गई थी.

याचिका में कहा गया था कि यह मामला न्याय की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता है, क्योंकि इसमें उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है. भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर को लगभग 450 गवाहों की गवाही सुने बिना या प्रतिवादियों को अपील का मौका दिए बिना मौत की सजा सुनाई गई थी. उन्होंने तीनों को निर्दोष घोषित करने की मांग की थी, क्योंकि सॉन्डर्स की हत्या पर 17 दिसंबर, 1928 को अनारकली बाज़ार पुलिस स्टेशन में दर्ज की गई एफआईआर में भगत सिंह का नाम भी नहीं था.

इस मामले में अंतिम सुनवाई 3 फरवरी, 2016 को हुई थी, जब अब्दुल रशीद कुरैशी ने तीन से अधिक न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ गठित करने की मांग की थी, क्योंकि भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को मौत की सजा तीन न्यायाधीशों की पीठ ने सुनाई थी. उन्हें 7 अक्टूबर, 1930 को मौत की सजा सुनाई गई थी और 23 मार्च, 1931 को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गई थी.

शहीदों की बेगुनाही साबित करने के लिए याचिका पर सुनवाई में अनावश्यक देरी से चिंतित इम्तियाज रशीद कुरैशी ने इस साल मार्च में निष्पक्ष सुनवाई के लिए आवेदन सहित मामले की जल्द सुनवाई के लिए आवेदन दायर किया था.

इम्तियाज ने इससे पहले 21 फरवरी, 2018 को इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान, 1973 के संविधान के अनुच्छेद 199 के तहत लाहौर उच्च न्यायालय में एक और याचिका दायर की थी, जिसमें पंजाब प्रांतीय सरकार को लाहौर के मध्य में स्थित एक गोल चक्कर ‘शादमान चौक’ का नाम बदलकर भगत सिंह चौक करने का निर्देश देने की मांग की गई थी, और पंजाब के मुख्य सचिव, डिप्टी कमिश्नर लाहौर और लॉर्ड मेयर लाहौर को प्रतिवादी बनाया गया था. शादमान गोल चक्कर उस स्थान पर बना था, जो उस समय लाहौर सेंट्रल जेल का हिस्सा था, जहां 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह को राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी दी गई थी.

5 सितंबर, 2018 को याचिका का निपटारा करते हुए न्यायमूर्ति शाहिद जमील खान की अदालत ने लाहौर के लॉर्ड मेयर को निर्देश दिया था कि वह शादमान गोल चक्कर का नाम भगत सिंह के नाम पर रखने की मांग वाली याचिका पर जल्द से जल्द फैसला लें.

जब इस मुद्दे पर 5 साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी कोई प्रगति नहीं हुई, तो इम्तियाज कुरैशी ने 1 मार्च, 2024 को पाकिस्तान के संविधान, 1973 के अनुच्छेद 204 के साथ न्यायालय की अवमानना ​​अधिनियम, 2003 की धारा 3/4 के तहत अवमानना ​​याचिका दायर की. लाहौर उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति शम्स महमूद मिर्जा की अदालत ने 4 मार्च को चौराहे का नाम भगत सिंह चौक रखने के लिए अवमानना ​​याचिका को मंजूरी दे दी.

न्यायमूर्ति शम्स महमूद मिर्जा ने 13 सितंबर, 2024 को प्रांतीय राजधानी के शादमान चौक का नाम स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह के नाम पर न रखने के खिलाफ अवमानना ​​याचिका पर कार्रवाई करने के लिए प्रतिवादियों को अंतिम मौका देते हुए मामले की सुनवाई 8 नवंबर तक के लिए स्थगित कर दी.

कानूनी लड़ाई शुरू करने से पहले, जिसके दौरान उन्हें कट्टरपंथी तत्वों से धमकियां मिलीं, इम्तियाज रशीद कुरैशी ने 2010 में पिता अब्दुल रशीद के साथ मिलकर भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन का गठन किया था.

53 वर्षीय कुरैशी ने कहा, “मेरे बड़े भाई पंजाब पुलिस में इंस्पेक्टर थे, अपने कॉलेज के दिनों में भगत सिंह से जुड़े दिनों को देखा करते थे, और उनसे प्रेरणा लेकर मैंने भगत सिंह की याद को आगे बढ़ाने का फैसला किया और समान विचारधारा वाले लोगों को साथ लेकर फाउंडेशन बनाया.”

“भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर, 1907 को फैसलाबाद के पास चक 105 बंगे गांव में हुआ था, उन्होंने लाहौर में पढ़ाई की और लाहौर सेंट्रल जेल में उन्हें फांसी भी दी गई. भगत सिंह सिर्फ़ भारत के शहीद नहीं हैं, बल्कि वे उपमहाद्वीप के नायक हैं और उन्हें सिर्फ़ हिंदू या सिख तक सीमित नहीं किया जा सकता, बल्कि मुसलमान भी उन्हें एक ऐसे नायक के रूप में देखते हैं, जिसने साम्राज्यवादी ताकतों के खिलाफ़ लड़ाई लड़ी. यहां तक ​​कि पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने भी 4 और 12 सितंबर, 1929 को नेशनल असेंबली में भगत सिंह की तारीफ़ की थी.”

इम्तियाज़ ने बिना किसी मदद के पाकिस्तान में भगत सिंह से जुड़े मामलों को आगे बढ़ाने के पीछे की वजहें बताते हुए कहा. वे कहते हैं कि मामलों को तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचाना अब मेरे जीवन का एकमात्र मिशन है. कुरैश से पहले भी लाहौर में इसी तरह के प्रयास किए गए थे.

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