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Saturday, November 1, 2025

“प्रेम वासना नहीं”: सुप्रीम कोर्ट ने POCSO के दोषी को किया बरी, कहा—न्याय के लिए कानून को झुकना जरूरी

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भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि “प्रेम को वासना नहीं समझा जा सकता”, और इसी आधार पर एक युवक को POCSO (Protection of Children from Sexual Offences) Act के तहत लगे आरोपों से बरी कर दिया। यह फैसला न सिर्फ कानूनी दृष्टिकोण से अहम है, बल्कि यह समाज में किशोर प्रेम संबंधों की जटिलता को भी उजागर करता है।

क्या है मामला?

मामला दक्षिण भारत के एक राज्य का है, जहाँ एक युवक पर 16 वर्षीय लड़की के साथ संबंध बनाने का आरोप लगा था।लड़की और युवक एक-दूसरे से प्यार करते थे, और बिना किसी जबरदस्ती के दोनों साथ भाग गए थे। बाद में लड़की के परिवार ने युवक के खिलाफ POCSO कानून के तहत मामला दर्ज कराया, जिसके बाद उसे निचली अदालत ने दोषी ठहराया। लेकिन युवक ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की, जिसमें कहा गया कि यह सहमति से हुआ संबंध था, और लड़की की उम्र में मामूली अंतर था।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि, “हर किशोर संबंध को अपराध नहीं माना जा सकता। जब दो नाबालिगों के बीच सच्चे प्रेम की स्थिति हो, तो कानून को न्याय के सामने झुकना होगा।” न्यायालय ने यह भी माना कि कानून का उद्देश्य बच्चों को शोषण से बचाना है, न कि सहमति से बने रिश्तों को अपराध की श्रेणी में लाना। कोर्ट ने युवक को सभी आरोपों से मुक्त करते हुए कहा कि इस तरह के मामलों में न्यायिक विवेक का इस्तेमाल जरूरी है, ताकि किसी की ज़िंदगी गलतफहमी या कठोर कानून की वजह से बर्बाद न हो।

कोर्ट ने कहा — “प्रेम और वासना में फर्क समझना होगा”

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में एक गहरी बात कही —

“प्रेम और वासना में फर्क होता है। यदि रिश्ता आपसी भावनाओं और सच्चे लगाव पर आधारित हो, तो उसे अपराध नहीं कहा जा सकता।” इस टिप्पणी को देशभर में “मानवता और संवेदनशील न्याय” के प्रतीक के रूप में देखा जा रहा है।कई कानून विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला भविष्य में ऐसे मामलों में नई मिसाल (precedent) बनेगा।

POCSO कानून क्या कहता है?

POCSO Act 2012 का उद्देश्य बच्चों को यौन शोषण, उत्पीड़न और हिंसा से बचाना है। इस कानून के तहत 18 वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति के साथ यौन संबंध बनाना सख्त अपराध माना जाता है, चाहे वह सहमति से क्यों न हुआ हो। हालाँकि, हाल के वर्षों में कई मामलों में यह देखा गया है कि सहमति आधारित प्रेम संबंधों को भी POCSO के अंतर्गत लाया जा रहा है, जिससे युवाओं के जीवन और करियर पर गहरा असर पड़ रहा है।

इससे पहले भी कोर्ट अपनी विशेष शक्तियों का कर चुका है प्रयोग

यह पहली बार नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने सहमति से हुए किशोर प्रेम संबंधों को अपराध की श्रेणी में आने से रोका है। इससे पहले मई में भी कोर्ट ने आर्टिकल 142 का इस्तेमाल कर पॉस्को एक्ट के तहत दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति को बरी कर दिया था। तब कोर्ट ने इस बात पर हैरानी जताई थी कि पश्चिम बंगाल के एक गांव की लड़की ने अकेले ही कानूनी लड़ाई लड़ी, ताकि अपने प्रेमी को जेल से छुड़ा सके। कोर्ट ने कहा कि वह समाज, परिवार और कानूनी व्यवस्था द्वारा पीड़ित को पहले ही झेल चुकी नाइंसाफी में और इजाफा नहीं करना चाहता।

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