छत्तीसगढ़ अपनी ऐतिहासिक संस्कृति और प्राचीन मंदिरों के लिए देश दुनिया में प्रसिद्ध है. यहाँ के मंदिर दर्शन के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं. इसी क्रम में आपने छत्तीसगढ़ के सबसे प्राचीन गणेश मंदिर ढोलकल गणेश मंदिर के बारे में तो सुना ही होगा. जो पुरे विश्व के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. लेकिन आज हम आपको छत्तीसगढ़ के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे जहाँ भगवान गणेश स्वयं भूमि फोड़ के प्रकट हुए हैं. यह मंदिर अपने अद्वितीय आकर्षण और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध हैं.
तो आइए जानते है इस मंदिर के पीछे की पूरी कहानी साथ ही छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने और ऐतिहासिक गणेश मंदिर के बारे में….
बालोद में स्थित यह मंदिर 100 वर्षों से भी पुराना है. इस मंदिर की विशेषता यह है कि भगवान गणेश की मूर्ति जमीन से प्रकट हुई है और लगातार बढ़ती जा रही है. मान्यता है कि गणेश स्वयं जमीन फोड़कर बाहर आए और धीरे-धीरे बढ़ते गए. मंदिर की छत भी बढ़ते गणेश के आकार के अनुसार ऊंची बनाई गई है. भक्तों का मानना है कि सच्चे मन से पूजा करने से उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
दंतेवाड़ा जिले के बैलाडीला पहाड़ी पर स्थित यह मंदिर 3000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. 10वीं और 11वीं सदी के नागा वंश के दौरान बनाया गया था.यहां भगवान गणेश की 3 फीट ऊंची पत्थर की मूर्ति विराजमान है. यह स्थान ट्रेकिंग प्रेमियों और प्राकृतिक सौंदर्य के प्रेमियों के लिए आदर्श है. दंतेवाड़ा से 13 किमी दूर स्थित, यह मंदिर धार्मिक आस्था और प्राकृतिक सौंदर्य का अनूठा मेल प्रस्तुत करता है.
‘मंदिरों के शहर’ बारसूर में स्थित जुड़वां गणेश मंदिर विशेष रूप से प्रसिद्ध है. यहां भगवान गणेश की दो विशाल मूर्तियां एक ही चट्टान पर बनी हैं जिसमें एक 7 फीट और दूसरी 5 फीट ऊंची है. पौराणिक मान्यता के अनुसार, राजा बाणासुर ने अपनी पुत्री की पूजा के लिए इस मंदिर का निर्माण कराया था. इन मूर्तियों की शानदार कलाकारी और निर्माण विधि भक्तों को मंत्रमुग्ध कर देती है.
इन मंदिरों की अद्वितीयता और धार्मिक महत्व ने छत्तीसगढ़ को एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और धार्मिक स्थल बना दिया है, जो आस्थावानों और पर्यटकों दोनों को आकर्षित करता है.