पंचांग के अनुसार, हर साल कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का पर्व मनाया जाता है. इस दिन सुहागिनें वैवाहिक जीवन को खुशहाल बनाए रखने, अपने पति की लंबी आयु के लिए विशेष श्रृंगार कर निर्जला व्रत करती हैं. वहीं, अविवाहित लड़कियां भी शीघ्र शादी और मन चाहे जीवनसाथी के लिए यह व्रत रखती हैं. करवा चौथ के दिन सोलह शृंगार का विशेष महत्व है. आईए जानते हैं इस शृंगार के महत्व के बारे में जानते हैं. इसमें श्रृंगार की हर सामग्री का बहुत महत्व है.
करवा चौथ के दिन श्रृंगार करने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है.भाग्य खुलता है. वैवाहिक जीवन में सदा खुशहाली बनी रहती है. पति दीर्घआयु होते हैं.सोलह शृंगार में सिंदूर सबसे महत्वपूर्ण होता है. इसे लगाने से पति की आयु लंबी होती है. इसलिए महिलाएं नाक तक इसे लगाती हैं.
यह सोना या किसी अन्य का धातु बना हो सकता है. इसे बालों के बीच में माथे पर लगाया जाता हैं.
सनातन धर्म में लाल बिंदी को वैवाहिक रिश्ते के प्रति समर्पण का प्रतीक माना जाता है.
यह फूलों से बना होता है. इसे बालों के जूड़े और चोटी में सजाया जाता है.
नथ को सुहाग की निशानी माना जाता है. इसे हमेशा नहीं, बल्कि किसी शुभ अवसर पर पहना जाता है.
यह सोने और चांदी या फिर अन्य किसी धातु के बने होते हैं. इससे महिलाओं की सुंदरता बढ़ती है.
श्रृंगार में मंगलसूत्र को सबसे ऊंचा दर्जा है. यह सुहाग की निशानी होता है. हर सुहागिन इसे पहनती है.
बाजूबंद को ऊपरी बांह पर पहना जाता है. यह मोती या हीरे से बना होता है.
इसे पैरों की उंगलियों में पहना जाता है. यह भी सुहाग का प्रतीक है.
सुहागिन महिलाओं के द्वारा चूड़ियों को पहनने से हाथों की शोभा बढ़ती है.
इसे हाथों और पैरों की खूबसूरती निखारने के लिए लगाया जाता है.
शादी के दौरान वर-वधू एक-दूसरे को अंगूठी पहनाते हैं.इसलिए सोलह श्रृंगार में इसका भी महत्वपूर्ण स्थान है.
इसे दोनों पैरों में पहना जाता है. इसे महिलाओं का प्रमुख शृंगार माना जाता है. यह चांदी की ही होती है.
यह लाल रंग का तरल पदार्थ होता है, जिसे सुहागिन पैरों व हाथों पर लगाती हैं. इससे चमक बढ़ती है.
यह कमर के चारों तरफ पहना जाने वाला एक सजावटी बेल्ट है. यह सोने या चांदी से बना होता है.
आंखों की सुंदरता को बढ़ाने के लिए महिलाएं काजल लगाती हैं. इससे बुरी नजर से बचाव होता है.