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Sunday, December 7, 2025

तीजन बाई: जिसने पुरुषों तक सीमित पंडवानी कला को दी नई पहचान, छत्तीसगढ़ की लोकदिवा से मिले प्रधानमंत्री मोदी – जानिए उनकी प्रेरक कहानी

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छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरती पर जन्मी तीजन बाई आज भारतीय लोककला की जीवित प्रतीक बन चुकी हैं। जिस पंडवानी कला को कभी पुरुषों तक सीमित माना जाता था, उसे तीजन बाई ने अपनी आवाज, अभिनय और अदम्य हिम्मत से वैश्विक मंच तक पहुंचाया। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीजन बाई का हालचाल पूछा और उनके योगदान की सराहना करते हुए कहा कि “तीजन बाई छत्तीसगढ़ ही नहीं, पूरे भारत की सांस्कृतिक धरोहर हैं।”

प्रधानमंत्री मोदी ने जताया सम्मान, कहा – तीजन बाई भारत की गौरवमयी परंपरा की मिसाल

छत्तीसगढ़ रजत महोत्सव के अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने जब राज्य की सांस्कृतिक विरासत का उल्लेख किया, तो उन्होंने विशेष रूप से तीजन बाई का नाम लेते हुए उनकी कला और समर्पण को नमन किया।

प्रधानमंत्री ने कहा,

“तीजन बाई जैसी कलाकार भारत की आत्मा हैं। उन्होंने लोककला के माध्यम से समाज को जोड़ने का काम किया है। पंडवानी के जरिए वे महाभारत के आदर्शों को आज की पीढ़ी तक पहुंचा रही हैं।” प्रधानमंत्री द्वारा उनका हालचाल पूछे जाने की खबर जैसे ही सोशल मीडिया पर फैली, देशभर में लोगों ने तीजन बाई को बधाइयों और शुभकामनाओं से नवाज दिया।

कौन हैं तीजन बाई? एक महिला जिसने तोड़ी सदियों की परंपरा

पंडवानी, छत्तीसगढ़ की पारंपरिक लोककला है, जिसमें महाभारत की कथाओं को गीत और नाट्य शैली में प्रस्तुत किया जाता है। लंबे समय तक यह कला केवल पुरुषों तक सीमित थी। लेकिन सिर्फ 13 साल की उम्र में, तीजन बाई ने समाज की परवाह किए बिना मंच पर कदम रखा। उनकी आवाज में ऐसी शक्ति और अभिनय में ऐसा भाव था कि दर्शक मंत्रमुग्ध हो उठे। धीरे-धीरे उन्होंने अपने दम पर वह मुकाम हासिल किया, जो आज भी किसी महिला कलाकार के लिए मिसाल है।

संघर्षों से भरा जीवन, पर हिम्मत कभी नहीं हारी

तीजन बाई का जन्म छत्तीसगढ़ के गनियारी गांव (जिला बिलासपुर) में एक गरीब परिवार में हुआ था। बचपन में ही उन्हें पंडवानी की कहानियां सुनने का शौक था। जब उन्होंने इसे मंच पर पेश करना शुरू किया, तो समाज ने उन्हें यह कहकर रोकने की कोशिश की कि यह कला “केवल पुरुषों के लिए है”। लेकिन तीजन बाई ने हार नहीं मानी। उन्होंने कहा, “अगर महाभारत में द्रौपदी, कुंती और सुभद्रा जैसे पात्र हैं, तो महिला कलाकार भी उन्हें जीवंत कर सकती है।” धीरे-धीरे उनका प्रदर्शन न केवल छत्तीसगढ़ में बल्कि पूरे देश में प्रसिद्ध हुआ। फिर उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की संस्कृति का प्रतिनिधित्व किया।

राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित

तीजन बाई को उनके अद्वितीय योगदान के लिए पद्म श्री (1988), पद्म भूषण (2003) और पद्म विभूषण (2019) जैसे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। उन्होंने यूनेस्को, लंदन, ऑस्ट्रेलिया, और फ्रांस तक में पंडवानी का प्रदर्शन कर भारत की पहचान मजबूत की। उनकी कला में केवल कथा नहीं, बल्कि आवाज़ की गूंज, चेहरे का भाव और देह की भाषा शामिल है। जब तीजन बाई मंच पर होती हैं, तो दर्शक मानो खुद को महाभारत के किसी दृश्य में महसूस करते हैं।

पंडवानी: लोककला से जनकला बनने का सफर

तीजन बाई की कला ने पंडवानी को लोककला से जनकला बना दिया। आज यह परंपरा देशभर में सिखाई और प्रस्तुत की जा रही है। कई युवा कलाकार उन्हें अपना प्रेरणास्रोत मानते हैं। उन्होंने यह साबित किया कि “कला का कोई लिंग नहीं होता”, और समर्पण से हर परंपरा को नई ऊंचाई दी जा सकती है।

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