छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 2018 में दुर्ग जिले के भिलाई नगर थाने में दर्ज दुष्कर्म मामले में पुणे के एक आर्थोपेडिक सर्जन को अग्रिम जमानत प्रदान कर दी है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा ने पाया कि पुलिस जांच सात वर्षों तक लंबी खिंची, और इस दौरान डॉक्टर को कोई नोटिस भी जारी नहीं किया गया।एफआईआर के अनुसार, शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि मार्च 2017 में भिलाई और 12 अप्रैल 2017 को पुणे के एक होटल में डॉक्टर ने शादी का वादा करके शारीरिक संबंध बनाए। इस शिकायत पर धारा 376 आईपीसी के तहत अपराध दर्ज किया गया था।
अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान डॉक्टर की ओर से पेश वकील ने कहा कि शिकायत झूठी है। उन्होंने अस्पताल के हेड ऑफ डिपार्टमेंट द्वारा प्रमाणित उपस्थिति रेकॉर्ड पेश किए, जिनसे साबित होता है कि डॉक्टर कथित घटनाओं के पूरे समय पुणे में ड्यूटी पर थे। वकील ने यह भी तर्क दिया कि जांच को एफआईआर तक पहुंचने में 19 माह की देरी हुई। इसमें कोई स्वतंत्र सबूत नहीं है, जिससे आरोपों की विश्वसनीयता कमजोर हो जाती है। सुनवाई के दौरान राज्य की ओर से जमानत का विरोध किया गया, लेकिन कोर्ट ने पुलिस से मिली रिपोर्ट पर गंभीर टिप्पणी की। डीजीपी की ओर से जमा की गई रिपोर्ट में बताया गया कि मामले की जांच में देरी के लिए पुलिसकर्मियों के दिए गए स्पष्टीकरण असंतोषजनक पाए गए। तीन जांच अधिकारियों को ‘चरित्र दोष’ की सजा दी गई और आईजी दुर्ग रेंज को वरिष्ठ पर्यवेक्षक अधिकारी की भूमिका की समीक्षा करने का निर्देश दिया गया।
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कोर्ट ने यह भी नोट किया कि 27 नवंबर 2025 को जब शिकायतकर्ता को बुलाने का नोटिस भेजा गया, तो एसएचओ को उसका घर खाली मिला और केवल फोन पर संपर्क किया जा सका। कोर्ट ने कहा कि सात साल की देरी का दोष अभियुक्त पर नहीं डाला जा सकता। इसलिए डॉक्टर की अग्रिम जमानत अर्जी स्वीकार की जाती है। मुख्य न्यायाधीश ने आदेश दिया कि गिरफ्तारी की स्थिति में आवेदक को व्यक्तिगत बांड और समान राशि की एक जमानतदार पेश करने पर रिहा किया जाए।डॉक्टर ने अदालत को आश्वासन दिया है कि उसके पास मौजूद व्हाट्सऐप चैट और वॉयस रिकॉर्डिंग वह फोरेंसिक जांच के लिए उपलब्ध कराएंगे।








