देव दीपावली का दिन बेहद शुभ माना जाता है। देव दीपावली पर गंगा आरती का आयोजन किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस शुभ दिन पर ज्यादा से ज्यादा पूजा-पाठ और दान-पुण्य करना चाहिए क्योंकि इस दिन धरती पर देवता आते हैं और अपने भक्तों को अच्छे कार्य करता देख प्रसन्न होते हैं तो आइए इस दिन से जुड़ी प्रमुख बातों को जानते हैं।
- देव दीपावली का सनातन धर्म में बेहद महत्व है।
- देव दीवाली को लोग बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप मनाते हैं।
- इस दिन धरती पर देवता आते हैं।
सनातन धर्म में देव दीवाली का बेहद महत्व है। यह पर्व हिंदू माह की कार्तिक में पूर्णिमा मनाया जाता है। यह दीवाली के 15वें दिन पड़ता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव ने इस दिन त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन पूजा-पाठ और वैदिक मंत्रों का जाप करने से दोगुना फल की प्राप्ति होती है। यह त्योहार शिव के पुत्र भगवान कार्तिक की जयंती का भी प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन देवता गण स्वर्ग से पृथ्वी लोक पर आते हैं और अपने भक्तों के सभी कष्टों को दूर करते हैं, तो चलिए देव दीवाली की तिथि और पूजा विधि से लेकर सबकुछ जानते हैं।
हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा की तिथि 15 नवंबर को सुबह 06 बजकर 19 मिनट पर शुरू होगी। वहीं, इस तिथि का समापन 16 नवंबर को देर रात 02 बजकर 58 मिनट पर होगा। सनातन धर्म में उदया तिथि का महत्व है। इसलिए 15 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा व देव दीपावली मनाई जाएगी। इसके साथ ही इस दिन 2 घंटे 37 मिनट तक का शुभ मुहूर्त रहेगा। ऐसे में प्रदोष काल में शाम 5 बजकर 10 मिनट से शाम 7 बजकर 47 मिनट तक देव दीपावली मनाई जाएगी।
- कार्तिक पूर्णिमा के दिन में उठकर स्नान करें।
- इस दिन गंगा नदी या किसी पवित्र नदी में स्नान करना शुभ माना जाता है।
- यदि किसी वजह से आप पवित्र नदी में स्नान के लिए नहीं जा पा रहे हैं, तो घर के पानी में गंगा जल मिलाकर स्नान करें।
- सुबह के समय मिट्टी के दीपक में घी या तिल का तेल डालकर दीपदान करें।
- भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करें।
- पूजा के समय भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें।
- घर के कोने-कोने में दीपक जलाएं।
- शाम के समय भी किसी मंदिर में दीपदान करें।
- इस दिन श्री विष्णु सहस्रनाम, विष्णु चालीसा का पाठ करें।
- आरती से पूजा को समाप्त करें।
- पूजा में हुई गलतियों के लिए क्षमा याचना करें।
- ऊं नमो नारायण नम:
- ऊँ श्रीं ल्कीं महालक्ष्मी महालक्ष्मी एह्येहि सर्व सौभाग्यं देहि मे स्वाहा।।