भारत सोने का रिजर्व तो पहले से रखता है, लेकिन अब देश ने एक बड़ा और रणनीतिक कदम उठाया है। केंद्र सरकार रेयर अर्थ और क्रिटिकल मिनरल्स का रणनीतिक भंडार (Strategic Reserve) बनाने की तैयारी कर रही है। इस कदम का सीधा मकसद है कि भारत रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भर बने और किसी भी परिस्थिति में दुश्मन देश की चालबाजियों से प्रभावित न हो। यह पहल इसलिए भी अहम है क्योंकि चीन ने हाल ही में प्रोसेस्ड रेयर अर्थ मिनरल्स के निर्यात पर रोक लगाई है, जिससे पूरी दुनिया में चिंता बढ़ गई है।
रक्षा निर्माण के लिए जरूरी हैं रेयर अर्थ मिनरल्स
आज दुनिया की सबसे आधुनिक रक्षा तकनीक और हथियारों का उत्पादन रेयर अर्थ मिनरल्स पर ही निर्भर करता है। चाहे वह सुपरसोनिक मिसाइलें हों, स्टील्थ फाइटर जेट, एयरक्राफ्ट कैरियर या एडवांस्ड वॉरशिप—इन सबके निर्माण में रेयर अर्थ की जरूरत होती है। यही नहीं, रडार सिस्टम, ड्रोन, लोइटरिंग म्यूनिशन और हाई-टेक सेंसर तक भी इन दुर्लभ खनिजों पर निर्भर हैं। ऐसे में अगर इन मिनरल्स की सप्लाई चेन टूटे तो राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।
इसी कारण भारत सरकार ने अब ठोस रणनीति बनाई है कि रेयर अर्थ का सुरक्षित भंडार रखा जाए, ताकि आपातकालीन स्थिति में घरेलू रक्षा उद्योग पर कोई असर न पड़े।
रणनीतिक प्रोजेक्ट का दर्जा मिलेगा
केंद्र सरकार न सिर्फ इन खनिजों का रिजर्व बनाएगी, बल्कि इनके खनन और प्रोसेसिंग को भी आसान बनाने के लिए स्ट्रैटेजिक प्रोजेक्ट का दर्जा देने जा रही है। इससे संबंधित प्रोजेक्ट्स को पर्यावरण और प्रशासनिक मंजूरियां तेजी से मिलेंगी और नौकरशाही की देरी से बचा जा सकेगा। इसका सीधा असर यह होगा कि भारत की रेयर अर्थ सप्लाई चेन और भी मजबूत और सुरक्षित हो जाएगी।
रीसाइक्लिंग पर 15,000 करोड़ का निवेश
भारत सिर्फ खनन पर ही नहीं, बल्कि रीसाइक्लिंग तकनीक पर भी बड़ा निवेश कर रहा है। सरकार ने बैटरी और ई-कचरे से क्रिटिकल मिनरल्स निकालने के लिए 15,000 करोड़ रुपये का इंसेंटिव प्रोग्राम लॉन्च किया है। इससे न सिर्फ अतिरिक्त मिनरल्स जुटाए जा सकेंगे बल्कि देश में सर्कुलर इकॉनमी (Circular Economy) को भी बढ़ावा मिलेगा। यह कदम भारत को आने वाले दशकों तक आत्मनिर्भर बनाने में मदद करेगा।
भारत के पास रेयर अर्थ का विशाल भंडार
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भारत के पास पहले से ही रेयर अर्थ मिनरल्स का बड़ा खजाना मौजूद है।
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एटॉमिक मिनरल्स डायरेक्टोरेट (AMD) के अनुसार, भारत के पास करीब 13.15 मिलियन टन मोनाजाइट है, जिसमें लगभग 7.23 मिलियन टन रेयर अर्थ ऑक्साइड (REO) मौजूद है।
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झारखंड, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, केरल, तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल के तटीय इलाकों और नदियों के किनारे इन खनिजों की प्रचुर मात्रा पाई जाती है।
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इसके अलावा राजस्थान और गुजरात की चट्टानों में लगभग 1.29 मिलियन टन रेयर अर्थ ऑक्साइड मिला है।
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जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (GSI) ने अपने सर्वेक्षण में पूरे देश में लगभग 486.6 मिलियन टन रेयर अर्थ मिनरल अयस्क संसाधन की पहचान की है।
इसका मतलब साफ है कि भारत के पास संसाधनों की कमी नहीं है, जरूरत है तो सिर्फ उनकी प्रोसेसिंग और व्यवस्थित उपयोग की।
चीन पर करारा जवाब
आज दुनिया के 90% से ज्यादा रेयर अर्थ की सप्लाई चीन के हाथ में है। चीन इस संसाधन का इस्तेमाल हथियार की तरह करता है। हाल ही में निर्यात पर पाबंदी लगाकर उसने यह साफ कर दिया कि वह दुनिया को अपने सामने झुकाने की कोशिश कर रहा है। लेकिन भारत ने अब उसकी इस चाल का तोड़ निकाल लिया है।
भारत ने न सिर्फ अपने रिजर्व पर काम शुरू किया है बल्कि सप्लाई चेन को मजबूत करने के लिए म्यांमार की खानों की ओर भी रुख किया है। यही नहीं, चीन के सबसे बड़े विरोधी ताइवान ने भी भारत के साथ सहयोग करने का संकेत दिया है। यह रणनीति चीन के एकाधिकार को तोड़ेगी और भारत को वैश्विक स्तर पर एक नई पहचान दिलाएगी।
क्यों अहम है यह पहल?
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भारत रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भर (Atmanirbhar Bharat) बनेगा।
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मिसाइल, फाइटर जेट, वॉरशिप और ड्रोन जैसे प्रोजेक्ट्स पर कोई रोक नहीं लगेगी।
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विदेशी सप्लाई चेन पर निर्भरता कम होगी।
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चीन की दबंगई और चालबाजी का सीधा जवाब मिलेगा।
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घरेलू खनन, प्रोसेसिंग और रीसाइक्लिंग उद्योग को बढ़ावा मिलेगा।
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