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Date: 2022-05-20
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राजस्थान के करौली, जोधपुर और भिलवाड़ा में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं के बीच नागौर का ईनाणा गांव सांप्रदायिक और जातिगत सद्भाव की मिसाल है। इस गांव के लोग अपने नाम के आगे जाति नहीं, गांव के नाम से बना सरनेम ईनाणियां ही लगाते हैं।

पीएचईडी से सेवानिवृत्त पुखराम ईनाणियां बताते हैं, हमारे गांव का नाम है ईनाणा और यहां के लोग अपने नाम के आगे ईनाणियां ही लगाते हैं ताकि सद्भाव कायम रहे। इस गांव में आपको न किसी दुकान में गुटखा मिलेगा और न ही यहां शराब का ठेका है। यूं तो बहुत कम घर मुस्लिम समाज के भी हैं, लेकिन सब ऐसे मिलकर रहते हैं जैसे एक ही समाज के हों। भास्कर टीम जब इस गांव पहुंची तो जंवरूद्दीन तेली गांव के शालिग्राम जी के मंदिर की चौखट पर ही बैठे मिले।

1358 में 12 खेड़ों को मिल बना था गांव
पुखराम बताते हैं, गांव 1358 में शोभराज के बेटे इंदरसिंह ने गांव बसाया। यहां 12 खेड़ों में 12 जातियां थीं। सबको मिलाकर ईनाणा बनाया। यह नाम इंदरसिंह के नाम पर पड़ा। तब से लोग अपने जाति की जगह ईनाणियां ही लिखते हैं। इंदरसिंह के दो अन्य भाई थे, जो गौ रक्षक थे।

इनमें एक हरूहरपाल गायों की रक्षा में शहीद हो गए थे जिन्हें पूरा गांव कुलदेवता के रूप में पूजता है। गांव में नायक, मेघवाल, खाती, जाट, कुम्हार, ब्राह्मण, तेली, लौहार, गोस्वामी व महाजन आदि जितनी भी जातियां हैं, अधिकतर ईनाणियां ही लगाते हैं। 4400 वोट, 10 हजार के करीब आबादी है।

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