भारत में त्योहारों का अपना ही रंग होता है और इन रंगों को और गहरा बनाने में मिठाइयों का बहुत बड़ा योगदान होता है। इनमें से एक खास मिठाई है कलाकंद जिसे बहुत से लोग मिल्ककेक भी कहते हैं। आज हम आपको इस मिठाई का दिलचस्प इतिहास बताने जा रहे हैं जो हमेशा से पूर्व पीएम अटल जी की भी फेवरेट रही है।
- सबसे पहले कलाकंद को राजस्थान के अलवर में लोकप्रिय बनाया गया।
- आज कलाकंद सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर में काफी मशहूर है।
- इस मिठाई का नाम ‘कलाकंद’ पड़ने के पीछे भी एक दिलचस्प वजह है।
कहते हैं व्रत हो या फिर त्योहार, मीठा तो बनता है! इस मीठे में सबसे ऊपर आता है कलाकंद या फिर आज के बच्चों का पसंदीदा मिल्ककेक। दीवाली जैसे बड़े त्योहार पर तो मानो कलाकंद का बोलबाला ही रहता है! बिना कलाकंद के भोग लगाए, मां लक्ष्मी की पूजा अधूरी-सी लगती है। बहुत से घरों में तो दिवाली से पहले ही घर में कलाकंद बनाने की तैयारी शुरू हो जाती है, ताकि दीवाली की रात पूरे परिवार के साथ बैठकर इसका आनंद लिया जा सके। ऐसे में, क्या आप जानते हैं कि बच्चों से लेकर बड़ों तक सभी की पसंदीदा और लोकप्रिय यह मिठाई आखिर आई कहां से? अगर नहीं, तो चलिए इस आर्टिकल में जानते हैं कलाकंद के दिलचस्प इतिहास के बारे में, जिसका स्वाद पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी को भी बेहद पसंद था।
कलाकंद की कहानी बेहद दिलचस्प है और यह एक संयोग से शुरू हुई थी। बताया जाता है कि आजादी से पहले पाकिस्तान के रहने वाले बाबा ठाकुर दास एक कुशल हलवाई थे। एक दिन, जब वे दूध उबाल रहे थे, अचानक दूध फट गया। दूध बर्बाद होने से दुखी होकर उन्होंने सोचा कि इसे किसी तरह बचाया जाए।
दास जी ने फटे हुए दूध को धीमी आंच पर पकाना शुरू किया और हैरान रह गए जब उन्होंने देखा कि दूध में दाने पड़ने लगे हैं और इसकी बनावट काफी अनोखी हो गई है। उन्होंने इसमें थोड़ी सी चीनी मिलाई और इसे और पकाया। घंटों की मेहनत के बाद एक नई मिठाई तैयार हुई जिसका स्वाद बेहद लाजवाब था।
जब लोगों ने इस नई मिठाई का स्वाद चखा तो वे दंग रह गए और बाबा ठाकुर दास से इसके नाम के बारे में पूछा। दास जी ने मुस्कुराते हुए कहा, “यह तो कला है!” और इसलिए इस मिठाई का नाम पड़ गया। आजादी के बाद दास परिवार राजस्थान के अलवर आकर बस गया और यहां कलाकंद को और अधिक लोकप्रिय बनाया। आज भी दास परिवार की तीसरी पीढ़ी इस पारंपरिक मिठाई को बना रही है और देश-विदेश में लोगों को इसका स्वाद चखा रही है।
झारखंड का झुमरी तलैया सिर्फ एक खूबसूरत पर्यटन स्थल ही नहीं, बल्कि अपने स्वादिष्ट केसरिया कलाकंद के लिए भी देश-दुनिया में मशहूर है। इस शहर में कलाकंद का सफर 1960 के दशक में शुरू हुआ था, जब भाटिया बंधुओं ने इस मिठाई को बनाने की कला को लोकप्रिय बनाया। आज, झुमरी तलैया में कलाकंद का कारोबार तेजी से फल-फूल रहा है और कई लोग इस स्वादिष्ट मिठाई के उत्पादन से जुड़े हुए हैं।
अलवर के कलाकंद के इतने शौकीन थे कि वे अपने काफिले को रोककर दास परिवार का बना कलाकंद जरूर खाते थे। जब भी उनका काफिला अलवर से गुजरता था, वे इस स्वादिष्ट मिठाई का आनंद लेने का मौका कभी नहीं चूकते थे। आजकल, ठाकुरदास का कलाकंद भारत की सीमाओं को पार कर दुबई जैसे देशों में भी अपनी लोकप्रियता बिखेर रहा है।