भारत को विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक व्यवस्था के रूप में जाना जाता है। लेकिन हाल के वर्षों में लोकतंत्र के मूलभूत मूल्य—जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, निष्पक्ष चुनाव, सामाजिक समानता और विधि का शासन—धीरे-धीरे कमजोर पड़ते दिखाई दे रहे हैं। आज जब राजनीतिक ध्रुवीकरण, संस्थागत हस्तक्षेप और सामाजिक असहिष्णुता बढ़ रही है, तब लोकतंत्र के इन मूल सिद्धांतों को पुनर्स्थापित करना न केवल आवश्यक बल्कि अनिवार्य हो गया है।
लोकतंत्र के मूल्य क्यों कमजोर हो रहे हैं
1. राजनीतिक ध्रुवीकरण का असर:
देश में विचारधाराओं के आधार पर बढ़ती दूरी लोकतंत्र के स्वस्थ विमर्श को प्रभावित कर रही है। असहमति को विरोध या शत्रुता के रूप में देखा जाने लगा है, जिससे संवाद और बहस की परंपरा कमज़ोर हो रही है।
2. संविधानिक संस्थाओं पर दबाव:
न्यायपालिका, चुनाव आयोग, मीडिया और संसद जैसी लोकतांत्रिक संस्थाएं, जिन पर लोकतंत्र की नींव टिकी है, अब सवालों के घेरे में हैं। इन पर राजनीतिक प्रभाव और दबाव का असर लोकतांत्रिक संतुलन को बिगाड़ रहा है।
3. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश:
सोशल मीडिया और पत्रकारिता के क्षेत्र में नियंत्रण और सेंसरशिप जैसी प्रवृत्तियाँ लोकतंत्र की आत्मा को आहत करती हैं। आलोचना या प्रश्न पूछने वालों को “राष्ट्रविरोधी” करार देना इस स्थिति को और गंभीर बनाता है।
4. सामाजिक असमानता और बहिष्कार:
लोकतंत्र तभी मजबूत होता है जब हर वर्ग को समान अवसर मिले। लेकिन आज भी जाति, धर्म और आर्थिक विषमता के आधार पर समाज में विभाजन मौजूद है। यह विभाजन लोकतांत्रिक भावना को कमज़ोर करता है।
लोकतांत्रिक सिद्धांतों की पुनर्स्थापना क्यों जरूरी है
1. सशक्त नागरिक समाज के लिए:
जब नागरिक स्वतंत्र रूप से अपनी बात रख सकते हैं, सरकार से सवाल पूछ सकते हैं और निर्णय प्रक्रिया में शामिल हो सकते हैं, तभी लोकतंत्र जीवंत रहता है।
2. संविधान की भावना बनाए रखने के लिए:
भारत का संविधान लोकतंत्र, समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और समानता के सिद्धांतों पर आधारित है। इन मूल्यों की रक्षा करना हर नागरिक और संस्था की जिम्मेदारी है।
3. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की प्रतिष्ठा के लिए:
एक मजबूत और पारदर्शी लोकतंत्र भारत की वैश्विक साख को बढ़ाता है। जब लोकतंत्र के मूल्य कमजोर पड़ते हैं, तो यह हमारी अंतरराष्ट्रीय छवि पर भी असर डालता है।
4. न्याय और समानता के संतुलन के लिए:
लोकतंत्र का असली उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी व्यक्ति या वर्ग उपेक्षित न रहे। न्याय और समानता तभी संभव है जब लोकतांत्रिक संस्थाएँ निष्पक्ष और स्वतंत्र रहें।
समाधान और आगे की राह
1. शिक्षा और जनजागरूकता:
लोकतांत्रिक अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक नागरिक ही व्यवस्था को मजबूत बना सकते हैं। स्कूल और कॉलेज स्तर पर नागरिक शिक्षा को बढ़ावा देना जरूरी है।
2. मीडिया की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना:
निष्पक्ष और स्वतंत्र मीडिया लोकतंत्र की रीढ़ है। सरकार और समाज, दोनों को इसकी स्वतंत्रता का सम्मान करना चाहिए।
3. संविधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता:
न्यायपालिका, चुनाव आयोग और अन्य संस्थाओं को किसी भी राजनीतिक प्रभाव से मुक्त रखना लोकतांत्रिक मजबूती के लिए आवश्यक है।
4. सकारात्मक राजनीतिक संवाद:
विपक्ष को दुश्मन नहीं, बल्कि लोकतंत्र का जरूरी हिस्सा मानना चाहिए। स्वस्थ बहस और सहयोग से ही लोकतंत्र परिपक्व होता है।








