भगवान श्रीराम त्रेता युग के समकालीन थे। उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम की संज्ञा दी गयी है। उन्होंने अपने जीवन में सभी कर्तव्यों का पालन मर्यादा में रहकर किया। इसके चलते उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम कहा जाता है। पिता की आज्ञा का पालन कर चौदह वर्षों तक वनवास में रहें। वनवास के दौरान रावण ने मैया सीता का हरण कर लिया। वनवास के दौरान भगवान श्रीराम को पत्नी का वियोग मिला। उस समय भगवान श्रीराम ने वानर सेना की मदद से रावण को परास्त कर माता जानकारी को मुक्त कराया। इस कार्य में भगवान श्रीराम को हनुमान जी का पूर्ण सहयोग प्राप्त हुआ। भगवान श्रीराम धनुर्धारी थे। उन्होंने सीता स्वयंवर में पिनाक धनुष तोड़ा था। इसके पश्चात, उनकी शादी माता जानकारी से मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर हुई थी। लेकिन क्या आपको पता है कि भगवान श्रीराम के धनुष का क्या नाम है और कैसे उन्हें प्राप्त हुआ
धर्म शास्त्रों की मानें तो भगवान श्रीराम के धनुष का नाम कोदंड था। इस धनुष की खासियत यह थी कि कोई सामान्य व्यक्ति या सामान्य योद्धा उसका वरण यानी धारण नहीं कर सकता था। यह पूर्णरूपेण चमत्कारी धनुष था। सामान्य बांस से कोदंड धनुष का निर्माण हुआ था। रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने कोदंड बांस की महिमा का बखान किया है। ऐसा भी कहा जाता है कि कोदंड धनुष से भगवान श्रीराम ने लंका जाने के क्रम में समुद्र को सुखाने के लिए प्रत्यंचा चढ़ाया था कि वरुणदेव प्रकट क्षमा याचने करने लगे। वरुण देव के अनुरोध के बाद भगवान श्रीराम ने क्षमा याचना की थी। इस धनुष से चलाया गया बाण निशाना भेदकर ही लौटता था। कोदंड धनुष का वजन एक क्विंटल था।
कई सनातन शास्त्रों में वर्णित है कि वनवास के दौरान भगवान श्रीराम लंबे समय तक दंडकारण्य वन में रहे थे। इस दौरान उन्होंने दंडकारण्य में रहने वाले असुरों का वध किया था। यह वन रावण का गढ़ था। इस वन में ही भगवान श्रीराम ने कोदंड धनुष का निर्माण किया था। दंडकारण्य वन में भगवान राम ने अस्त अस्त्र-शस्त्र भी एकत्र किये थे। इस धनुष के माध्यम से भगवान श्रीराम ने रावण सेना का नाश किया था।