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Friday, March 14, 2025

कब और कैसे हुई चंद्र देव की उत्पत्ति? जिन्हें महादेव ने सिर पर किया था धारण

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सनातन धर्म में चंद्र देव की पूजा-अर्चना करने का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यता है कि चंद्र देव की विधिपूर्वक उपासना करने से शांति, सुख और समृद्धि में वृद्धि होती है। साथ ही चंद्र देव की कृपा से बिजनेस में वृद्धि होती है। चंद्र देव को ग्रह और देव माना गया है। चंद्र देव की उत्पत्ति की कथा समुद्र मंथन से संबंधित है। ऐसे में आइए इस आर्टिकल में जानते हैं चंद्र देव की उत्पत्ति कैसे हुई?

इस तरह हुई चंद्र देव की उत्पत्ति

पुराण के अनुसार, ब्रह्मा जी ने ऋषि अत्रि को सृष्टि का विस्तार करने के लिए आज्ञा दी। इसके बाद अत्रि ने विधिपूर्वक तप किया। तप का शुभ फल प्राप्त हुआ और उनकी आंखों से जल की बूंदें टपक रही थीं, जिनमें अधिक प्रकाश था। इसके बाद दिशाओं ने स्त्री रूप धारण किया और बूंदो को ग्रहण किया, जिससे उन्हें पुत्र प्राप्ति हो। ये बूंदें पेट में गर्भ रूप में स्थित हो गईं। लेकिन उस प्रकाशमान गर्भ को दिशाएं धारण नहीं कर पाईं, जिसकी वजह से उन्होंने उसे त्याग कर दिया। ब्रह्मा जी ने उस गर्भ को पुरूष का रूप दिया। जो चंद्रमा के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

सभी देवी-देवता ने उनकी स्तुति की। चंद्र देव के प्रकाश से औषधियां उत्पन्न हुईं।  चंद्र देव की उत्पति को लेकर स्कंद पुराण में भी वर्णन किया गया है। कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के समय चौदह रत्न निकले थे, जिनमें चंद्रमा भी था। समुद्र मंथन से निकला विष महदेव ने पी लिया, जिसकी वजह से उनका शरीर गर्म हो गया। ऐसे में शीतलता के लिए भगवान शिव ने अपने सिर पर चंद्रमा धारण किया। धार्मिक मान्यता है कि तभी से उनके मस्तक पर चंद्रमा विराजमान हैं।

करें ये उपाय

  • यदि आपकी कुंडली में चंद्रमा कमजोर है, तो ऐसे में सोमवार और शुक्रवार के दिन गरीब लोगों या फिर मंदिर में सफेद चीजों का दान करें। मान्यता है कि इन चीजों का दान करने से कुंडली में चंद्रमा मजबूत होता है। साथ ही चंद्र देव की कृपा प्राप्त होती है।
  • इसके अलावा लोगों को पानी पिलाएं और सफेद कपड़ों का दान करें। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस उपाय को करने से कुंडली में चंद्र ग्रह मजबूत होता है और जीवन में सभी सुख मिलते हैं।
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