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Karwa Chauth पर आखिर क्यों होती है करवा माता की पूजा, पतिव्रता धर्म के तपोबल से जुड़ा है इसका कनेक्शन

नई दिल्ली। सनातन धर्म में करवा चौथ का अधिक महत्व है। करवा चौथ (Karwa Chauth 2024) के दिन व्रत के दौरान करवा माता की पूजा की जाती है, जिसके लिए पूजा स्थल पर उनका चित्र भी लगाया जाता है। करवा का यह चित्र करवा माता के पत्निव्रता धर्म के तपोबल की कहानी को दर्शाता है। ऐसे में चलिए जानते हैं इस चित्र से जुड़ी कहानी।

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कौन हैं करवा माता

पौराणिक कथा (Karwa Chauth Vrat Katha) के अनुसार, करवा नाम की एक पतिव्रता स्त्री थी। एक दिन जब उनके पति स्नान के लिए नदी में गए, तो इस दौरान एक मगरमच्छ ने उनका पैर पकड़ लिया। मगरमच्छ करवा के पति को गहरे पानी में खींचने लगा। तब वह अपनी पत्नी को सहायता करने के लिए पुकारा। चूंकि करवा एक पतिव्रता स्त्री थी, इसलिए उनके सतीत्व में काफी बल था। जब करवा अपने पति की सहायता करने के लिए पहुची, तो सूती साड़ी से धागा निकालकर अपने तपोबल से मगरमच्छ को बांध दिया। धागे से बंधे हुए मगरमच्छ को लेकर करवा यमराज के पास पहुंची। तब यमराज ने करवा से कहा कि हे देवी, आप यहां क्या कर रही हैं और क्या चाहती हैं।

इसपर करवा ने यमराज से कहा कि इस मगरमच्छ ने मेरे पति के पैर पकड़ लिया था, इसलिए आप इसे मृत्युदंड प्रदान करें। तब यमराज ने कहा कि अभी इस मगर की आयु शेष है, इसलिए इसे मृत्युदंड नहीं दिया जा सकता। इससे करवा क्रोधित होकर बोली कि अगर आप इस मगरमच्छ को मृत्युदंड देकर मेरे पति को चिरायु का वरदान नहीं देंगे, तो मैं अपने सतीत्व के तपोबल से नष्ट कर दूंगी। तब यमराज और चित्रगुप्त चौंक गए और इसके लिए कोई युक्ति सोचने लगे। अंततः यमराज ने मगर को यमलोक भेज दिया और करवा के पति को चिरायु का वरदान दिया।

करवा के इस सतीत्व को देखकर चित्रगुप्त काफी प्रसन्न हुए और करवा को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद दिया। साथ ही यह भी कहा कि आज की तिथि पर, जो महिला आस्था और विश्वास के साथ तुम्हारा व्रत करेगी, उसके सौभाग्य की रक्षा मैं स्वयं करूंगा। उस दिन से ही कार्तिक मास की चतुर्थी तिथि पर करवा चौथ का व्रत किया जाता है।

 

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