मेडिकल कॉलेजों में MBBS और BDS सीटों के लिए इस साल हुई NEET काउंसलिंग के तीन राउंड पूरे होने के बावजूद करीब 1200 सीटें खाली रह गई हैं। यह आंकड़ा मेडिकल शिक्षा की स्थिति और छात्रों की प्राथमिकताओं पर कई सवाल खड़े करता है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि ये सीटें सिर्फ सरकारी कॉलेजों में नहीं, बल्कि कई प्राइवेट मेडिकल संस्थानों में भी खाली पड़ी हैं।
क्यों खाली रह गईं इतनी सीटें?
नीट (NEET-UG 2025) परीक्षा में इस साल रिकॉर्ड उम्मीदवार शामिल हुए थे, लेकिन इसके बावजूद काउंसलिंग के तीन राउंड के बाद इतनी सीटें भर नहीं पाईं। विशेषज्ञों के अनुसार, इसके पीछे कई प्रमुख कारण जिम्मेदार हैं।
एक्सपर्ट्स ने बताए 5 बड़े कारण
- प्राइवेट कॉलेजों की ऊंची फीस: कई राज्यों में प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में MBBS की फीस 70 लाख से लेकर 1 करोड़ रुपये तक पहुंच चुकी है। अधिकांश छात्र या उनके परिवार इतनी भारी फीस वहन नहीं कर पाते, इसलिए सीटें खाली रह जाती हैं।
- अल्प-ज्ञात या नए कॉलेजों में इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी: हाल के वर्षों में कई नए मेडिकल कॉलेज खुले हैं, लेकिन उनमें अस्पताल की सुविधाएं, अनुभवी फैकल्टी या क्लिनिकल एक्सपोजर पर्याप्त नहीं होता। छात्र ऐसे कॉलेजों में दाखिला लेने से बचते हैं।
- राज्यवार काउंसलिंग की जटिल प्रक्रिया: अलग-अलग राज्यों की अलग-अलग काउंसलिंग प्रक्रियाएं, दस्तावेज़ सत्यापन और फीस जमा करने के नियम छात्रों को भ्रमित करते हैं। कई छात्र सही समय पर प्रक्रिया पूरी नहीं कर पाते और सीटें छूट जाती हैं।
- विदेशी मेडिकल यूनिवर्सिटीज़ की ओर रुझान: रूस, जॉर्जिया, फिलीपींस और नेपाल जैसे देशों में सस्ती MBBS डिग्री मिलने के कारण भारतीय छात्र वहां का रुख कर रहे हैं। वहां की फीस और रहने का खर्च भारत की तुलना में काफी कम है।
- BDS को लेकर घटती रुचि: पहले जहां दंत चिकित्सा (BDS) को MBBS के बाद दूसरा विकल्प माना जाता था, वहीं अब स्टूडेंट्स का झुकाव अन्य कोर्स जैसे फार्मेसी, नर्सिंग, या पैरामेडिकल की ओर बढ़ा है। यही वजह है कि BDS की सीटें अधिक खाली रह जाती हैं।
मेडिकल एजुकेशन सिस्टम पर सवाल
शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को मेडिकल कॉलेजों की गुणवत्ता सुधारने और फीस स्ट्रक्चर को नियंत्रित करने पर ध्यान देना चाहिए। वरना हर साल इस तरह की सीटें खाली रहना आम बात हो जाएगी।








