फोर्टिस हेल्थ केयर के साथ कोल इंडिया ने किया एमओयू किया जाएगा थैलेसीमिया से ग्रसित बच्चों का इलाज

Date: 2023-08-21
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रायपुर. लोगों की जिंदगी बचाने में सदैव प्रयासरत फोर्टिस हेल्थ केयर ने थैलेसीमिया से ग्रसित बच्चों के इलाज के लिए कोल इंडिया लिमिटेड से हाथ मिलाया है. ये पहल कोल इंडिया के सीएसआर इनिशिएटिव 'थैलेसीमिया बाल सेवा योजना' के तहत की गई है. इस पार्टनरशिप के लिए फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम में 28 जुलाई को एमओयू साइन किया गया था. इस दौरान कोल इंडिया की सीएसआर जनरल मैनेजर रेणु चतुर्वेदी, थैलेसेमिक्स इंडिया की सचिव शोभा तुली, फोर्टिस हेल्थ केयर के ग्रुप सीओओ अनिल विनायक, फोर्टिस गुरुग्राम में हेमेटोलॉजी व बोन मैरो ट्रांसप्लांट के प्रिंसिपल डायरेक्टर डॉक्टर राहुल भार्गव समेत फोर्टिस के अन्य सीनियर लोग मौजूद रहे. कोल इंडिया ने 2017 में थैलेसीमिया बाल सेवा योजना की शुरुआत थैलेसीमिया से ग्रसित वंचित बच्चों को इलाज मुहैया कराने के लिए की थी. 2020 में इस प्रोग्राम में एप्लास्टिक एनीमिया को भी जोड़ दिया गया. MoU के अनुसार, जो मरीज बोन मैरो ट्रांसप्लांट के लिए पात्र हैं उन्हें कोल इंडिया लिमिटेड की तरफ से 10 लाख रुपये तक की वित्तीय सहायता दी जाती है और उनका इलाज फोर्टिस अस्पताल, गुरुग्राम में किया जा सकता है. फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट में लगभग 20 डॉक्टरों की एक अनुभवी टीम के साथ देश के सबसे बड़े और सबसे व्यापक बीएमटी केंद्रों में से एक है, जो सभी प्रकार के ब्लड डिसऑर्डर के इलाज में महारत रखते हैं. ये टीम मुश्किल से मुश्किल मामले में भी बीएमटी करती है. बोन मैरो ट्रांसप्लांट सेंटर गुरुग्राम में 26 बेड वाले बीएमटी आईसीयू हैं जहां 250 से ज्यादा हैप्लोआइडेंटिकल बीएमटी, 100 से ज्यादा सिकल सेल एनीमिया बीएमटी, 100 से ज्यादा थैलेसीमिया बीएमटी और 75 से ज्यादा मल्टीपल स्केलेरोसिस समेत कुल 1500 से ज्यादा बोन मैरो ट्रांसप्लांट को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है. फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट गुरुग्राम में हेमेटोलॉजी व बोन मैरो ट्रांसप्लांट के प्रिंसिपल डायरेक्टर डॉक्टर राहुल भार्गव ने बताया, ''भारत को थैलेसीमिया की दुनिया की राजधानी के रूप में जाना जाता है क्योंकि देश में थैलेसीमिया से ग्रसितों की संख्या करीब 42 मिलियन है और करीब 1 लाख पेशंट बीटा थैलेसीमिया सिंड्रोम के हैं. इन परिस्थितियों को देखते हुए ये जरूरी है कि लोगों को इस बीमारी के बारे में अवेयर किया जाए और आवश्यक इलाज मुहैया कराया जाए. फोर्टिस हेल्थ केयर इस दिशा में लगातार काम कर रहा है, यहां तक कि ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को लाभ पहुंचाया जा रहा है. अब कोल इंडिया लिमिटेड के साथ साझेदारी के बाद ज्यादा संख्या में थैलेसीमिया से संक्रमित वंचित बच्चों को लाभ पहुंचेगा और बीमारी का लोड देश पर कम होगा.'' फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट गुरुग्राम में हेमेटो ऑन्कोलॉजी एंड बोन मैरो ट्रांसप्लांट, पीडिएट्रिक हेमेटोलॉजी के प्रिंसिपल डायरेक्टर व हेड डॉक्टर विकास दुआ ने कहा, ''थैलेसीमिया एक वंशानुगत ब्लड डिसऑर्डर है. इसके चलते बॉडी पर्याप्त मात्रा में हीमोग्लोबिन प्रोड्यूस कर पाने में असमर्थ रहती है. हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं का एक बेहद अहम घटक है जिसके कमी अगर हो जाए तो शरीर ऑक्सीजन ले जाने में असमर्थ रहता है. इसका असर ये होता है कि जान का संकट खड़ा हो जाता है. यह एक आनुवंशिक वजह से होता है, और माता-पिता से बच्चों में ये बीमारी आती है. इस बीमारी से बचाव किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए लोगों में जागरूकता फैलाना जरूरी है.'' थैलेसीमिया एक अलग तरह की दुर्लभ बीमारी है जिसमें बार-बार ब्लड ट्रांसफ्यूजन कराने की आवश्यकता पड़ती है, साथ ही इसमें जीवन बचाने के लिए अलग-अलग तरह के मेडिकल इलाज भी कराने पड़ते हैं. एक अनुमान के अनुसार भारत में हर साल 10 हजार से ज्यादा थैलेसीमिया ग्रसित बच्चे पैदा होते हैं. पूरी दुनिया में थैलेसीमिया से संक्रमित बच्चों की संख्या भारत में सबसे ज्यादा है जो करीब 1 से डेढ़ लाख के बीच है. थैलेसीमिया इंटरनेशनल फेडरेशन का अनुमान है कि अगर बचाव न किया गया तो भारत में थैलेसीमिया के मरीजों की संख्या 2026 तक 2,75,000 तक पहुंच सकती है. जब शरीर नए ब्लड सेल्स प्रोड्यूस करना बंद कर देता है तो एप्लास्टिक एनीमिया की समस्या होती है. हर साल करीब 9400 लोग इससे डायग्नोज होते हैं. इस तरह की बीमारियां परिवारों पर भावनात्मक, साइकोलॉजिकल और आर्थिक तौर पर बोझ डालती हैं. खासकर, उन परिवारों के लिए बहुत मुश्किल हो जाती है जो ग्रामीण या गरीब होते हैं. इन बीमारियों का स्थायी इलाज स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के जरिए किया जाता है जिसे बोन मैरो ट्रांसप्लांट भी कहते हैं. ये देखा गया है कि अगर शुरुआती उम्र में ही बीएमटी करा ली जाए तो इलाज ज्यादा सफल रहता है.
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