सुप्रीम कोर्ट में एक अहम याचिका पर सुनवाई शुरू होने जा रही है, जिसका सीधा संबंध आजीवन कारावास की अवधि से है। सवाल यह है कि क्या संवैधानिक अदालत किसी जघन्य अपराध के दोषी को निचली अदालत द्वारा सुनाई गई आजीवन कैद की सजा को बदलकर निश्चित अवधि की कैद (जैसे 20 या 30 साल) में बदल सकती है।

मामला: केरल के पादरी की सजा से जुड़ा
यह मामला केरल के एक पूर्व रोमन कैथोलिक पादरी एडविन पिगारेज से जुड़ा है, जिसे निचली अदालत ने एक नाबालिग लड़की का यौन शोषण करने के जुर्म में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। हालांकि, बाद में केरल हाईकोर्ट ने इस सजा को बदलकर 20 साल की कैद (बिना किसी रियायत) कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सीजेआई बीआर गवई और जस्टिस के. विनोदचंद्रन की पीठ ने बुधवार को कहा कि प्रथम दृष्टया कोर्ट का मानना है कि:
- मृत्युदंड के स्थान पर अदालत निश्चित अवधि की कैद दे सकती है।
- अदालत यह भी तय कर सकती है कि ऐसी कैद में किसी तरह की छूट (जैसे पैरोल या सजा में कमी) न मिले।
पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि इस तरह की सजा केवल उन्हीं मामलों में दी जानी चाहिए, जहां अपराध जघन्य हो लेकिन “रेयरेस्ट ऑफ रेयर” श्रेणी में न आता हो।
कब मिलता है सजा में छूट का अधिकार?
भारत में प्रचलित कानून के अनुसार, यदि किसी को आजीवन कारावास की सजा होती है, तो वह आमतौर पर 14 साल जेल काटने के बाद सजा में छूट पाने का हकदार हो जाता है। यही कारण है कि अदालतें कई बार मृत्युदंड की जगह 20 साल, 30 साल या प्राकृतिक जीवन तक की निश्चित सजा सुनाती हैं।
पादरी ने काट ली आधी सजा
सीनियर एडवोकेट आर. बसंत की ओर से दायर जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने माना कि पिगारेज पहले ही लगभग 10 साल जेल में बिता चुका है। यह अवधि हाईकोर्ट द्वारा सुनाई गई 20 साल की सजा का आधा हिस्सा है। इसी आधार पर कोर्ट ने फिलहाल उसे राहत दी।
अपराध की गंभीरता
पिगारेज पर आरोप है कि उसने 2014 और 2015 के बीच एक आठवीं कक्षा की छात्रा का बार-बार यौन उत्पीड़न किया। पीड़िता की मां ने अप्रैल 2015 में पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। इसके बाद उसे आईपीसी और पॉक्सो एक्ट की कई धाराओं के तहत दोषी ठहराया गया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
क्यों है यह मामला अहम?
यह सुनवाई केवल पिगारेज के मामले तक सीमित नहीं है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने वाले समय में यह तय करेगा कि:
- आजीवन कारावास की अवधि को क्या हमेशा “जीवनभर” माना जाए या फिर अदालतें इसे निश्चित सालों की कैद में बदल सकती हैं।
- मृत्युदंड के विकल्प के रूप में अदालतों के पास कितनी लचीलापन है।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भविष्य में कई मामलों पर असर डाल सकता है और भारतीय दंड संहिता में आजीवन कारावास की व्याख्या को नया रूप दे सकता है।








