गुरू घासीदास जी को छत्तीसगढ़ के महान संत के रूप में जाना जाता है। यह बचपन से ही दिव्य व्यक्तित्व वाले थे। यह सतनामी समाज के प्रवर्तक होने के साथ-साथ एक समाज सुधारक भी थे। सतनामी समुदाय के अनुयायियों के लिए गुरु घासीदास जयंती खास महत्व रखती है। आज भी लाखों लोग उनके बताए रास्ते पर चलते हैं। ऐसे में चलिए जानते हैं उनसे जुड़ी कुछ खास बातें।
- गुरु घासीदास ने छत्तीसगढ़ में सतनामी समुदाय की स्थापना की, जिसमें ‘सतनाम’ का अर्थ है सत्य और समानता।
- इन्होंने स्कूली शिक्षा प्राप्त नहीं की, बल्कि स्वयं ही ज्ञान प्राप्त किया।
- इन्होंने अपने विचारों का प्रचार करने का काम छत्तीसगढ़ के घने जंगलों से शुरू किया।
- गुरु घासीदास के बाद, उनके पुत्र गुरु बालक दास ने उनकी शिक्षाओं को आगे बढ़ाने का काम किया।
गुरू घासीदास जी के समकालीन समाज में भेदभाव और विषमता आदि जैसी बुराइयां चारों ओर फैली हुई थी। ऐसे में उन्होंने समाज में फैली इन कुरीतियों को पर रोक लगाने के लिए भी लोगों को प्रेरित किया। साथ ही लोगों को सत्य के मार्ग पर चलने की भी शिक्षा दी। उन्होंने अपने समाज में फैली आर्थिक विषमता, शोषण, जातिगत भेदभाव और अस्पृश्यता को समाप्त करके ‘मनखे मनखे एक समान’ (मानव- मानव एक समान) का संदेश दिया।
गुरु घासीदास ने सत्य का प्रतीक माने जाने वाले जय स्तंभ की रचना की। इसमें एक सफेद रंग का लकड़ी का लट्ठे के शीर्ष पर एक सफेद झंडा होता है। इसे जो सत्य के मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति का प्रतीक माना जाता है। इसे सत्य स्तंभ अर्थात सत्य के स्तंभ के रूप में भी जाना जाता है।