सनातन धर्म में एकादशी तिथि जगत के पालनहार भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी को समर्पित है। वर्ष में कुल 24 एकादशी तिथि होती हैं। सनातन शास्त्रों में एकादशी तिथि का विशेष उल्लेख देखने को मिलता है। धार्मिक मान्यता है कि एकादशी तिथि पर सच्चे मन से श्रीहरि और मां लक्ष्मी की उपासना और अन्न-धन का दान करने से इंसान को जीवन में अन्न और धन की कमी का सामना नहीं करना पड़ता है। हर साल पौष माह में सफला एकादशी मनाई जाती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि सफला एकादशी व्रत क्यों किया जाता है। अगर नहीं पता, तो ऐसे में चलिए आपको इसकी वजह के बारे में बताएंगे।
पौराणिक कथा के अनुसार, राजा महिष्मान के 4 पुत्र थे। उनमें से एक पुत्र बेटा दुष्ट और पापी था। साथ ही बुरे काम करता था, जिसकी वजह से उसे राजा ने नगर से निकाल दिया। इसके बाद वह जंगल में रहकर मांस का सेवन करता था। वह एकादशी के दिन जंगल में संत की कुटिया पर पहुंच गया, तो उसे संत ने अपना शिष्य बना लिया, जिसके बाद उसके चरित्र में बदलाव आया। संत के कहने पर उसने एकादशी व्रत किया और फिर संत ने लुम्पक के पिता महिष्मान का वास्तविक रूप धारण किया। इसके बाद लुम्पक पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि पर सफला एकादशी का व्रत विधिपूर्वक करने लगा।
पंचांग के अनुसार, पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 25 दिसंबर को रात 10 बजकर 29 मिनट पर होगी। वहीं, एकादशी तिथि का समापन 27 दिसंबर को रात 12 बजकर 43 मिनट पर होगा। ऐसे में 26 दिसंबर को सफला एकादशी व्रत किया जाएगा।
- सफला एकादशी व्रत को विधिपूर्वक करने से इंसान को सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
- इस दिन भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की उपासना करने का विधान है।
- इंसान को लंबी आयु का वरदान प्राप्त होता है।
- आय और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है।
- सच्चे मन से पूजा करने से मनोकामनाएं जल्द पूरी होती हैं।
- जीवन के दुख और संकट दूर होते हैं।
- पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- दान करने से आर्थिक तंगी से छुटकारा मिलता है।