दिल हमारे शरीर के सबसे अहम अंगों में से एक है, जिसका काम है खून पंप करके शरीर के अलग-अलग हिस्सों तक पहुंचाना। हालांकि, यह ऐसा कैसे कर पाता है, इस बारे में कभी सोचा है आपने? तो चलिए आज हम आपको इससे जुड़ी एक बेहद चौंकाने वाली बात बताते हैं। दिल एक बहुत कॉम्प्लेक्स बॉडी ऑर्गन है, लेकिन इसमें ताज्जुब की बात यह है कि दिल का अपना एक दिमाग भी होता है। जी हां, दिल का अपना एक अलग दिमाग होता है, जो उसे काम करने में मदद करता है और उसके काम को कंट्रोल भी करता है । आइए इस बारे में और विस्तार से जानते हैं।
आमतौर पर माना जाता है कि दिमाग सिग्नल्स भेजता है, जिसके कारण दिल अपना काम करता है। अगर दिमाग किसी कारण से सिग्नल भेजना बंद कर दे, तो दिल भी काम करना बंद कर देगा, लेकिन आपको बता दें कि ऐसा नहीं है। दिल में लगभग 4 हजार न्यूरॉन्स होते हैं, जो एक जटिल नेटवर्क बनाते हैं। इस नेटवर्क को दिल का न्यूरोसिस्टम या ‘मिनी ब्रेन’ कहा जाता है। यह न्यूरोसिस्टम इतना शक्तिशाली है कि यह दिल को स्वतंत्र रूप से काम करने की क्षमता देता है। ये न्यूरॉन्स दिमाग से स्वतंत्र रूप में काम करते हैं। इसका मतलब है कि दिल बिना दिमाग पर निर्भर हुए बिना अपना काम कर सकता है।
इस बारे में नेचर कम्यूनिकेशन्स में एक स्टडी भी पब्लिश हुई है। यह स्टडी Karolinska Institutet and Columbia University में हुई, जिसमें जेब्राफिश, जिसका दिल इंसानों के दिल से काफी हद तक मिलता जुलता है, पर परीक्षण किए गए और यह पाया गया कि दिल में पाए जाने वाले ये न्यूरॉन्स, दिल के दिमाग की तरह काम करते हैं। इनमें से कुछ न्यूरॉन्स पेसमेकर्स के गुण भी पाए जाते हैं, जो दिल की धड़कनों को कंट्रोल करने में अहम भूमिका निभाते हैं। साथ ही, यह दिल के फंक्शन को कंट्रोल करने के लिए स्वतंत्र रूप से काम करता है।
इससे यह बात समझ में आती है कि दिल सिर्फ दिमाग के कंट्रोल में नहीं रहता, बल्कि इसमें मौजूद न्यूरॉन्स दिल के कई फंक्शन्स को नियंत्रित करते हैं। पेसमेकर प्रॉपर्टीज होने की वजह से ये न्यूरॉन्स कार्डियक रिदम को कंट्रोल कर सकते हैं। हार्ट एरिथमिया और अन्य कार्डियक डिजीज को समझने में यह स्टडी अहम भूमिका निभा सकती है।