अर्थव्यवस्था में तेज बढ़ोतरी को देखते हुए वर्ष 2030 तक देश में सालाना 30 करोड़ टन स्टील की खपत का अनुमान लगाया जा रहा है। स्टील मंत्रालय के मुताबिक ऐसे में अगले छह साल में स्टील उत्पादन में 12 करोड़ टन की बढ़ोतरी की आवश्यकता होगी।अभी देश में 18 करोड़ स्टील उत्पादन की क्षमता है। 12 करोड़ टन की उत्पादन क्षमता तैयार करने के लिए 10 लाख करोड़ का निवेश करना होगा। मंत्रालय इस क्षमता का विस्तार ग्रीन स्टील से करने जा रहा है। अभी दुनिया के किसी देश ने ग्रीन स्टील की परिभाषा तय नहीं की है, लेकिन स्टील मंत्रालय की तरफ से ग्रीन स्टील की परिभाषा तय कर दी गई है और इस प्रकार ग्रीन स्टील में भारत वैश्विक नेतृत्व की ओर बढ़ रहा है।
मंत्रालय चाहता है कि वर्ष 2030 से देश में सिर्फ ग्रीन स्टील का उत्पादन हो। हालांकि अभी इसे अनिवार्य नहीं बनाया गया है, लेकिन पूरी तैयारी इसी दिशा में हो रही है। गुरुवार को स्टील मंत्री एच.डी कुमारस्वामी ने ग्रीन स्टील की परिभाषा को सार्वजनिक किया। दुनिया के कुल कार्बन उत्सर्जन में स्टील सेक्टर की हिस्सेदारी सात प्रतिशत है।
मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक 12 करोड़ टन ग्रीन स्टील के उत्पादन के क्षमता विस्तार के लिए सरकार प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआइ) स्कीम से इसे जोड़ने पर विचार कर रही है। विशेष प्रकार के स्टील (स्पेशल स्टील) के उत्पादन को लेकर सरकार पहले ही पीएलआई स्कीम ला चुकी है।ग्रीन स्टील की मांग में बढ़ोतरी के लिए मंत्रालय स्टील की सरकारी खरीद में 37 प्रतिशत ग्रीन स्टील की खरीदारी को अनिवार्य कर सकती है। कुमारस्वामी ने कहा कि भारत दूसरा सबसे बड़ा स्टील उत्पादक देश है। ग्रीन स्टील के उत्पादन में वैश्विक नेतृत्व देना चाहता है।
बिजली खपत के आधार पर जैसे एसी और फ्रिज की रेटिंग की जाती है, वैसे ही ग्रीन स्टील की रेटिंग की जाएगी। एक टन स्टील के फिनिश्ड प्रोडक्ट के निर्माण में 2.2 टन से कम कार्बन उत्सर्जन पर उसे ग्रीन स्टील माना जाएगा। अगर कार्बन उत्सर्जन 1.6 टन से कम है तो उसे फाइव स्टार रेटिंग, 1.6-2 टन के उत्सर्जन पर फोर स्टार रेटिंग तो 2.0-2.2 तक कार्बन उत्सर्जन होने पर थ्री स्टार रेटिंग दी जाएगी।