क्रिसिल रेटिंग्स के अनुसार कंपनियों के कर्ज अपग्रेड और डाउनग्रेड का अनुपात इस साल की पहली छमाही में 2.75 गुना हो गया है, जो पिछले साल की दूसरी छमाही में 1.79 गुना था। इससे इंडिया इंक की बेहतर होती क्रेडिट क्वालिटी का पता चलता है। क्रिसिल रेटिंग्स के सीनियर डायरेक्टर सोमशेखर वेमुरी का कहना है, क्रेडिट क्वालिटी में सुधार मुख्य रूप से इन्फ्रास्ट्रक्चर में सरकार के निवेश और निजी खपत में वृद्धि के कारण है। आगे ब्याज दरों में कमी आने पर घरेलू मांग बढ़ेगी। हालांकि भू-राजनीतिक जोखिम का निर्यात और सप्लाई चेन पर होने वाले असर पर हमारी नजर रहेगी।

वित्त मंत्रालय के अनुसार, पहले पांच महीने में भारत से वस्तुओं का निर्यात बहुत मामूली बढ़ा है। इससे वैश्विक डिमांड में कमजोरी, उत्पादन और प्रतिस्पर्धा में भारत की चुनौतियों का पता चलता है। ईवाई का कहना है कि हाल के वर्षों में तेल को छोड़ बाकी मर्चेंडाइज वस्तुओं का निर्यात सर्विसेज की तुलना में अधिक रहा है। उदाहरण के लिए 2021-22 में नॉन-ऑयल मर्चेंडाइज निर्यात 354 अरब डॉलर था जबकि सर्विसेज का निर्यात 255 अरब डॉलर का हुआ। लेकिन मौजूदा वित्त वर्ष के पहले चार महीने में सर्विसेज का निर्यात थोड़ा ज्यादा है। इसमें 11.7% की वृद्धि हुई जबकि नॉन-ऑयल मर्चेंडाइज निर्यात में सिर्फ 4.8% की वृद्धि हुई है। अप्रैल-जुलाई तक 118 अरब डॉलर के नॉन-ऑयल मर्केंडाइज निर्यात की तुलना में 119 अरब डॉलर की सेवाओं का निर्यात हुआ।

सर्विसेज का नेट निर्यात बढ़ने और रेमिटेंस में वृद्धि होने से बाहरी झटकों से भारतीय अर्थव्यवस्था को बचाने में मदद मिलेगी। भारत के ऊर्जा उत्पादन में रिन्यूएबल एनर्जी का अनुपात लगातार बढ़ रहा है, इसलिए ऊर्जा आयात पर निर्भरता भी आगे कम होगी। आयात बढ़ने से यह संकेत मिलता है कि घरेलू मांग बढ़ रही है, लेकिन शहरों में मांग घटने के संकेत भी हैं। ऑटोमोबाइल बिक्री में सुस्ती से इसे समझा जा सकता है। अप्रैल से अगस्त तक यात्री वाहनों की बिक्री 5.5% और कॉमर्शियल वाहनों की 3.9% बढ़ी है। इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों के रजिस्ट्रेशन 14.2% और यात्री वाहनों के 13.5% कम हुए हैं। इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने सोमवार को पीएम-ई ड्राइव योजना को नोटिफाई किया है। कुल 10,900 करोड़ रुपये की यह योजना 1 अक्टूबर 2024 से 31 मार्च 2026 तक लागू रहेगी। इसका मकसद ईवी की बिक्री बढ़ाने के साथ चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर और ईवी ईकोसिस्टम का निर्माण करना है।

जोशी के अनुसार आईआईपी उत्पादन के आंकड़े देखें तो पूंजीगत वस्तुओं के उत्पादन में तेज वृद्धि हुई है। हालांकि औद्योगिक उत्पादन इंडेक्स (आईआईपी) 4.7% से सुधर कर जुलाई में 4.8% हुआ है। इसके बावजूद जीडीपी आंकड़ों में निजी खपत में काफी वृद्धि दिखाई गई है, तो हो सकता है कि वस्तुओं की तुलना में सेवाओं की मांग ज्यादा रही हो। या फिर मांग को आयातित वस्तुओं से पूरा किया गया हो।

अप्रैल-जुलाई के दौरान रेलवे से माल ढुलाई 4.9% और विमान से 13.7% बढ़ी। यह ई-कॉमर्स और अंतरराष्ट्री कार्गो ऑपरेशन में वृद्धि के कारण है। इन चार महीने में पेट्रोलियम पदार्थों की खपत भी 4.8% बढ़ी। दैनिक ऊर्जा खपत में 12.5% इजाफा हुआ है। अप्रैल-जुलाई में रिन्यूएबल एनर्जी उत्पादन 7.1% बढ़ा। कुल बिजली उत्पादन में रिन्यूएबल का हिस्सा 12% से 15% के बीच है।

वित्त मंत्रालय का कहना है कि भू-राजनीतिक तनाव, व्यापार में विवाद, जलवायु परिवर्तन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में तरक्की से विश्व व्यापार बदल रहा है। विभिन्न देश संरक्षणवादी नीतियां अपना रहे हैं और ग्लोबल सप्लाई चेन में बदलाव आ रहा है। ऐसे में डब्लूटीओ ने 2024 और 2025 में विश्व व्यापार में धीमी वृद्धि का अनुमान जताया है।

अक्टूबर 2023 से अब तक कच्चा तेल 70 से 90 डॉलर प्रति बैरल के बीच रहा है। लेकिन ओपेक देशों की तरफ से उत्पादन में कटौती करने और भू-राजनीतिक तनाव के कारण आगे इसके दाम बढ़ने का खतरा है। हालांकि रिन्यूएबल का इस्तेमाल बढ़ने से कोयला के दाम विश्व बाजार में ज्यादा नहीं बढ़े हैं। केंद्रीय बैंकों की खरीद और निवेश मांग के कारण सोना महंगा हो रहा है। भू-राजनीतिक तनाव की वजह से उद्योगों में प्रयोग होने वाले मेटल महंगे हो सकते हैं। अप्रैल से अगस्त के दौरान पांच महीने में कॉपर 12.7% महंगा हो चुका है। एल्युमिनियम के दाम भी बढ़े हैं। लेकिन चीन में कंस्ट्रक्शन सेक्टर से मांग कम होने के कारण स्टील की कीमतें अप्रैल-अगस्त के दौरान 24% कम हुई हैं।

भारत के लिए कुछ और चुनौतियां भी हैं। जैसे महंगाई दर को 4% से नीचे बरकरार रखना चुनौतीपूर्ण होगा। हाल में सब्जियां महंगी हुई हैं जिससे सितंबर में खाद्य महंगाई बढ़ने की आशंका है। खाद्य पदार्थों और ईंधन को छोड़कर बाकी चीजों की कोर महंगाई मई 2023 से लगभग हर महीने कम हो रही थी, लेकिन जुलाई में इसमें वृद्धि हुई है। लगातार बिगड़ती भू-राजनीतिक परिस्थितियों से निर्यात प्रभावित हो सकता है। हाल में जारी पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि रोजगार में कृषि का हिस्सा बढ़ा है। यानी दूसरे क्षेत्रों में लोगों को काम कम मिल रहा है और वे कृषि में मजदूरी की ओर लौट रहे हैं।

एसएंडपी के मुताबिक मौजूदा वित्त वर्ष में पीएमआई लगातार अच्छा बना हुआ है। हालांकि खर्च बढ़ाने के कारण सरकार का कर्ज भी जीडीपी के 86% तक पहुंच गया है। इस मामले में यह जापान, इटली, फ्रांस, इंग्लैंड और अमेरिका के बाद दुनिया में छठे स्थान पर है। आगे ग्रोथ निजी क्षेत्र के निवेश पर निर्भर करेगी और मैन्युफैक्चरिंग बढ़ाना जरूरी है। क्रिसिल का कहना है कि अगले पांच वर्षों में 18 से 20 प्रतिशत औद्योगिक निवेश सेमीकंडक्टर, इलेक्ट्रॉनिक्स और फोटोवोल्टेक मॉड्यूल मैन्युफैक्चरिंग जैसे नए सेक्टर में होंगे। ईवाई के अनुसार कस्टम ड्यूटी ढांचे में सुधार, भविष्य के सेक्टर पर फोकस और एक राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स पॉलिसी लागू करके मैन्युफैक्चरिंग में दीर्घकालिक ग्रोथ हासिल की जा सकती है।