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Tuesday, February 11, 2025

शॉपिंग का नया ट्रेंड सेट कर रहा ‘क्विक कॉमर्स’, जमकर बढ़ रही पॉपुलैरिटी; क्या हैं मायने

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सब्जीवाला, दूधवाला, ग्रॉसरीवाला, पान वाला जैसे नाम हमारे समाज और आर्थिकी में गहरी पैठ रखते हैं। अगर इसे हम आंकड़ों से समझें तो देश में 1.3 करोड़ किराना स्टोर और आठ करोड़ से अधिक असंगठित खुदरा व्यवसायी (जैसे सब्जी वाले, फेरीवाले) हैं, जो हर आम से लेकर खास तक की खरीदारी जरूरतों को पूरा कर रहे हैं या कहें ये सभी पीढ़ियों से भारत में खरीदारी की नींव रहे हैं। इनवेस्ट इंडिया के अनुसार इनका देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 10 प्रतिशत का योगदान है, लेकिन बीते कुछ वर्षों से हमारी खरीदारी की आदतें बदल रही हैं। हमारी सुविधाजनक और त्वरित आपूर्ति की चाहत को पूरा करने के लिए नए दौर के स्टार्टअप ब्लिंकिट, बीबीनाउ, इंस्टामार्ट, जेप्टो और फ्लिपकार्ट मिनट्स आदि आगे आए हैं। इन्हें क्विक कॉमर्स या क्यू कॉमर्स के नाम से जाना जाता है।

क्विक कॉमर्स का बाजार अब देश के बड़े शहरों से निकलकर छोटे शहरों और कस्बों में विस्तार ले रहा है। ग्रॉसरी के अलावा अब नए उत्पादों की आन-डिमांड डिलीवरी खरीदारी का नया ट्रेंड क्यू कॉमर्स मांग में वृद्धि हो रही है। एक अनुमान के मुताबिक साल दर साल के हिसाब से इसमें 75 प्रतिशत वृद्धि संभावित है या कहें साल 2025 क्विक कॉमर्स के लिए ऐतिहासिक मुकाम हो सकता है। शहरी ग्राहकों के लिए उपयोगीः सुविधाजनक और कम समय में आपूर्ति सुनिश्चित करने जैसी खूबियों के कारण क्विक कॉमर्स की मांग बढ़ रही है। 10 से 30 मिनट में खरीदारी करने का यह नया तरीका शहरी ग्राहकों के लिए लाइफलाइन बन रहा है।

ग्रॉसरी के साथ-साथ अब पर्सनल केयर आइटम और दवाओं तक की डिलीवरी क्विक कॉमर्स के जरिए हो रही है। स्मार्टफोन का बढ़ता इस्तेमाल और ग्राहकों के खरीदारी बर्ताव में आ रहा बदलाव भारतीय ई-कॉमर्स इकोसिस्टम में क्विक कॉमर्स को तेजी प्रदान कर रहा है। क्विक कॉमर्स के जरिए जहां दस मिनट से लेकर दो घंटे के भीतर ही सामान ग्राहक तक पहुंच जाता है, वहीं पारंपरिक ई-कॉमर्स में इसी काम के लिए दो से तीन दिन का समय लग जाता है। दरअसल, क्विक कॉमर्स ‘डार्क स्टोर’ या माइक्रो वेयरहाउस नेटवर्क आधारित होने के कारण हाइपर-लोकल स्तर पर आपूर्ति सुनिश्चित करता है।

व्यस्त शहरी जीवन, बढ़ती आमदनी और सुविधा की चाहत के चलते यह सेक्टर तेजी से लोकप्रिय बन रहा है। ग्रॉसरी की जरूरतों से लेकर स्नैक्स तक आज सब कुछ स्मार्टफोन से आर्डर कर कुछ ही मिनटों में मंगाया जा सकता है। फिनटेक सेक्टर में एआई के बढ़ते प्रभाव से कई अन्य क्षेत्रों को लाभ मिल रहा है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ), मशीन लर्निंग (एमएल) और ऑटोमेशन से वाणिज्यिक गतिविधियां बेहतर, विस्तृत और सुविधाजनक हो रही हैं। चाहे वह भंडारण व्यवस्था हो, संचालन हो, मांग का अनुमान लगाना हो या आपूर्ति प्रबंधन हो या फिर रूट ऑप्टिमाइजेशन करना हो, सब कुछ नई तकनीक ने आसान बना दिया है। कुल मिलाकर कहें तो नए दौर की तकनीकें क्विक कॉमर्स ऑपरेशन में रीढ़ की तरह काम करने लगी हैं।

क्विक कॉमर्स क्षेत्र खुदरा और डी 2 सी (डायरेक्ट टू कस्टमर) बाजार को बदल रह है। यह ग्राहकों की सुविधा, तुरंत संतुष्टि और ऑन-डिमांड डिलीवरी सेवाओं की बढ़ती मांग के कारण हो रहा है। वित्त वर्ष 24-25 में इसके 3.8 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है, जो बाजार के बड़े विस्तार को दर्शाता है। हाल के ट्रेंड्स में हाइपर-लोकल डिलीवरी माडल का विस्तार हो रहा है, जिसमें शहरी क्षेत्रों में 10 से 30 मिनट की डिलीवरी का लक्ष्य रखा गया है साथ ही एआइ और मशीन लर्निंग को बेहतर इन्वेंट्री प्रबंधन और कस्टमर सर्विस के लिए अपनाया जा रहा है। वरुण टांगरी, सीईओ और फाउंडर, क्यूबस्टर (प्वाइंट आफ सेल सोल्यूशन)

नए उत्पादों की मांग ग्रॉसरी के अलावा वेलनेस प्रोडक्ट, उपहार, पेट केयर वइलेक्ट्रानिक्स आइटम की मांग बढ़ेगी। नए तकनीकी अनुप्रयोग एनालिटिक्स के साथ- साथ रोबोटिक्स और ड्रोन का भी प्रयोग बढेगा। इससे लागत में कमी आएगी। तकनीकी विकास: हर कार्य के लिए मोबाइल प्रयोग करने की आदत से डिमांड और सप्लाई में तेजी आ रही है। शहरीकरण: तेजी से बढ़ता शहरीकरण क्विक कॉमर्स के लिए उर्वर जमीन तैयार कर रहा है। भुगतान सुविधा: यूपीआई क्रांति का बड़ा लाभ क्विक कॉमर्स जैसे उभरते क्षेत्रों को मिल रहा है। एआइ के प्रयोग से ग्राहकों का अनुभव बेहतर हो रहा है, आटोमेशन और फ्राड डिटेक्शन में भी सुविधा मिल रही है।

ग्राहक बर्ताव: व्यस्त जीवनशैली और सुविधा को देखते हुए कंपनियां भी अपने डिलीवरी माडल में लगातार नवाचार कर रही हैं। नियमन की कमी: इस क्षेत्र के विकास के साथ नियमन की कमी महसूस होना स्वाभाविक है, खासकर गिग वर्कर्स, डिलीवरी एजेंटों के अधिकार, ग्राहकों की डाटा सुरक्षा और ग्राहक अधिकारों से जुड़ी चिंताएं बढ़ेगी। उच्च लागत डार्क स्टोर और वर्कफोर्स के व्यापक डिलीवरी नेटवर्क को दुरुस्त करने के बाद लाभ को बढ़ाने के लिए कंपनियों को चुनौती का सामना करना पड़ेगा।

आपूर्ति समस्याएं: सघन बसावट वाले इलाकों में कम समय में सामानों की आपूर्ति सुनिश्चित कर पाना निश्चित ही चुनौतीपूर्ण होगा। दूसरा, इस सेक्टर में अलग-अलग कंपनियों के आने से प्रतिस्पर्धा का दबाव बढ़ेगा। ब्लिंकिट, जेप्टो और स्विगी इंस्टामार्ट जैसी कंपनियां भारत में क्विक कॉमर्स क्रांति की अगुवाई कर रही हैं। बाजार की संभावनाओं को देखते हुए अमेजन, फ्लिपकार्ट और बिगबास्केट जैसे बड़ेई-कॉमर्स प्लेटफार्म भी इस स्पेस में अपनी जगह बनाने को तैयार हैं। इससे बाजार प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी साथ ही एफएमसीजी ब्रांड्स के बीच भी प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। इलेक्ट्रिक वाहनों के जरिए डिलीवरी करने जैसे प्रयोग भी देखने को मिलेंगे।

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