प्रदोष व्रत बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह दिन भगवान शिव को अति प्रिय है। यह प्रत्येक माह में दो बार आता है। इस बार यह व्रत 13 नवंबर को रखा जाएगा। ज्योतिष की दृष्टि से प्रदोष का खास महत्व है। इस दिन उपवास रखने और सच्ची श्रद्धा के साथ शिव परिवार की आराधना करने से अक्षय फलों की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन सुखी रहता है।
- प्रदोष व्रत का सनातन धर्म में बड़ा महत्व है।
- प्रदोष व्रत भगवान शिव की पूजा के लिए समर्पित है।
- शिव जी की पूजा से सभी परेशानियों का अंत होता है।
प्रदोष व्रत का दिन अपने आप में शुभ होता है। यह दिन भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा के लिए समर्पित है। इस दिन व्रत रखने से सुख-शांति, सफलता और समृद्धि जीवन की प्राप्ति होती है। प्रदोष का मतलब है – अंधकार को दूर करना। इस साल कार्तिक माह का आखिरी प्रदोष व्रत 13 नवंबर को मनाया जाएगा। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत का पालन करने से साधक के सभी दुखों का अंत होता है, तो आइए इस दिन से जुड़ी प्रमुख बातों को जानते हैं।
हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी की शुरुआत 13 नवंबर दोपहर 01 बजकर 01 मिनट पर होगी। वहीं, इस तिथि का समापन 14 नवंबर सुबह 09 बजकर 43 मिनट पर होगा। ऐसे में प्रदोष व्रत बुधवार 13 नवंबर को रखा जाएगा। इस दिन शाम 05 बजकर 49 मिनट से रात 08 बजकर 25 मिनट तक रहेगा।
सुबह उठकर पवित्र स्नान करें।भगवान शंकर और माता पार्वती के समक्ष व्रत का संकल्प लें। एक वेदी पर शिव परिवार की प्रतिमा विराजमान करें। गंगाजल से प्रतिमा को स्नान करवाएं और उन्हें अच्छी तरह साफ करें। देसी घी का दीपक जलाएं और कनेर, मदार और आक के फूलों की माला अर्पित करें। शिव जी को सफेद चंदन का त्रिपुंड लगाएं। उन्हें खीर, हलवा, फल, मिठाइयों, ठंडई, लस्सी आदि का भोग लगाएं।
प्रदोष व्रत कथा का पाठ करें, पंचाक्षरी मंत्र और शिव चालीसा का पाठ करें। प्रदोष पूजा शाम के समय ज्यादा शुभ मानी जाती है, इसलिए प्रदोष काल में ही पूजा करें। अगले दिन अपने व्रत का पारण करें। साथ ही तामसिक चीजों से परहेज करें।